परंपराओं में रचा-बसा पर्व
बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है और 13 चरणों में सम्पन्न होता है, जिसमें प्रमुख आयोजन जैसे पट जात्रा, कलश स्थापना, रथारोहण, मावली परघाव, और अंत में बहराम देव विदाई शामिल हैं। (Bastar Dussehra) हर चरण में स्थानीय देवी-देवताओं, जनजातीय पुजारियों (गुड़ियाओं), मांझी चालकी, और परगनाओं की विशेष भूमिका होती है।रथ यात्रा और लकड़ी से बनी परंपराएं
बस्तर दशहरा की सबसे भव्य झलक होती है विशाल लकड़ी के रथ की रथयात्रा। यह रथ देवियों की अगुवाई में नगर भ्रमण करता है, जिसे किसी भी मशीन या जानवर से नहीं, बल्कि हजारों श्रद्धालुओं द्वारा खींचा जाता है। यह एकता, समर्पण और आस्था का प्रतीक बन जाता है।आदिवासी संस्कृति और देवी आराधना का संगम
यह पर्व आदिवासी संस्कृति, लोक परंपराओं और देवी पूजा का संगम है। देवी दन्तेश्वरी, जिन्हें बस्तर की कुलदेवी माना जाता है, इस उत्सव की मुख्य आराध्या हैं। पूरे आयोजन में ब्राह्मणों की नहीं, बल्कि आदिवासी पुजारियों की अगुवाई होती है, जो इसे भारत के अन्य दशहरा उत्सवों से अलग करती है।सामाजिक समरसता और जनभागीदारी
बस्तर दशहरा ना केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, पारंपरिक लोकतंत्र और जनभागीदारी का भी प्रतीक है। इसमें प्रत्येक समुदाय, जाति और जनजाति की अपनी भूमिका होती है। राजा आज भी इस उत्सव में “सेवक” के रूप में शामिल होते हैं, जो जनतंत्र की भावना को दर्शाता है।
पर्यटन और पहचान
आज बस्तर दशहरा न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि पूरे देश और विदेश के लिए सांस्कृतिक आकर्षण बन चुका है। हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक इसे देखने आते हैं और बस्तर की जीवंत संस्कृति से रूबरू होते हैं।रहस्यमयी परंपराओं से जुड़ी एक अद्भुत कहानी
भारत में दशहरा आमतौर पर भगवान राम की रावण पर विजय का प्रतीक माना जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में मनाया जाने वाला दशहरा इससे बिल्कुल अलग और रहस्यमयी है। यह न तो रावण दहन से जुड़ा है, न ही रामलीला से— बल्कि यह मां दंतेश्वरी की आराधना, तांत्रिक विधियों, जनजातीय परंपराओं और गहरे आध्यात्मिक रहस्यों से जुड़ा विश्व का सबसे लंबा दशहरा पर्व है, जो पूरे 75 दिनों तक चलता है।रहस्य की शुरुआत: देवी का आदेश या संयोग?
कहा जाता है कि 13वीं शताब्दी में बस्तर के तत्कालीन राजा पुरुषोत्तम देव ने माता दंतेश्वरी की आज्ञा पर इस पर्व की शुरुआत की थी। मान्यता है कि राजा ने जगदलपुर में माता का दर्शन करने के बाद राज्य की रक्षा के लिए दशहरा उत्सव शुरू करने का संकल्प लिया। (Bastar Dussehra) लेकिन यह दशहरा कोई साधारण उत्सव नहीं था- इसमें तांत्रिक अनुष्ठान, देवी का रथ, रात्रि पूजन और अज्ञात शक्तियों के आह्वान जैसे रहस्यमयी पहलू जुड़े हुए थे।75 दिन तक क्यों मनाया जाता है?
बस्तर दशहरा की शुरुआत हरेली अमावस्या से होती है और इसका समापन 13 प्रमुख अनुष्ठानों के साथ होता है। इन अनुष्ठानों में पट जात्रा (लकड़ी लाने की परंपरा), देवी का निवेदन, काछिन गादी, रथारोहण, मावली परघाव, और अंत में बहराम देव की विदाई शामिल होती है। हर चरण का अपना रहस्य है– विशेषकर मावली यात्रा, जिसमें देवी की प्रतिमा को रात के अंधेरे में जंगल से लाया जाता है, जहां केवल विशेष पुरोहित ही जा सकते हैं।तांत्रिक साधनाएं और रात्रि पूजन
बस्तर दशहरा में ब्राह्मणों की जगह जनजातीय पुजारियों (गुड़िया, सिरहा, मांझी) की भूमिका प्रमुख होती है। रात्रि के समय गुप्त तांत्रिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें कोई बाहरी व्यक्ति शामिल नहीं हो सकता। माना जाता है कि इन रात्रि पूजाओं के माध्यम से अदृश्य शक्तियों को प्रसन्न किया जाता है, जो बस्तर की रक्षा करती हैं।देवी दंतेश्वरी और “मावली” की अनकही कड़ी
बस्तर दशहरा में देवी दंतेश्वरी को राज्य की कुलदेवी माना जाता है, लेकिन पर्व में एक और देवी “मावली” की विशेष भूमिका होती है, जिन्हें जंगल से लाकर दंतेश्वरी देवी के साथ बैठाया जाता है।यह परंपरा बस्तर में प्रकृति, जंगल और देवी के बीच के गहरे रहस्यात्मक संबंध को दर्शाती है, जिसे सामान्य जन कभी-कभी समझ भी नहीं पाते।

बस्तर दशहरा पर्व कैसे मनाया जाता है?
छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल में मनाया जाने वाला बस्तर दशहरा भारत का सबसे लंबा, अनोखा और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध त्योहार है। यह पर्व 75 दिनों तक चलता है और राम-रावण की लड़ाई से नहीं, बल्कि मां दंतेश्वरी देवी की आराधना और जनजातीय परंपराओं से जुड़ा होता है।शुभारंभ – हरेली अमावस्या से शुरू
बस्तर दशहरा की शुरुआत सावन महीने की हरेली अमावस्या से होती है।इस दिन लकड़ी लाने की परंपरा होती है जिसे “पट जात्रा” कहा जाता है।
यह लकड़ी देवी के रथ के निर्माण के लिए लाई जाती है।
Bastar Dussehra: 13 अनुष्ठानों की श्रृंखला
इस पर्व में 13 प्रमुख पारंपरिक अनुष्ठान होते हैं, जिनमें शामिल हैं: काछिन गादी स्थापना (राज परिवार द्वारा देवी के प्रतिनिधि को गादी सौंपना)कुम्हार जात्रा (रथ निर्माण की शुरुआत)
रथारोहण (देवी का रथ सजाना और यात्रा शुरू करना)
मावली परघाव (जंगल से देवी मावली को नगर लाना)
बहराम देव विदाई (समापन अनुष्ठान)
विशाल लकड़ी का रथ खींचना
देवी के लिए तैयार किया गया विशाल रथ नगर में घुमाया जाता है।इसे किसी जानवर या वाहन से नहीं, बल्कि हजारों लोग रस्सी से खींचते हैं।
यह रथ यात्रा पूरे बस्तर के लोगों को एकजुट करती है।
आदिवासी परंपराएं और देवी पूजन
इस दशहरा में ब्राह्मणों के बजाय आदिवासी पुजारी (गुड़िया, मांझी, चालकी) पूजा करते हैं।मां दंतेश्वरी देवी, बस्तर की कुलदेवी हैं, जिनकी विशेष पूजा होती है।
रात्रि में विशेष तांत्रिक अनुष्ठान होते हैं, जिनमें बाहरी लोग शामिल नहीं होते।
सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव
पूरे बस्तर अंचल से लोग पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होते हैं।लोक नृत्य, गीत, वाद्य यंत्र, झांकियां और आदिवासी कला का प्रदर्शन होता है।
यह पर्व सामाजिक एकता, आस्था और परंपरा का उत्सव बन जाता है।