सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए अमानुल्लाह व जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने एसबीआइ की विशेष अनुमति याचिका निरस्त कर दैवेभो कर्मियों को राहत दी। मामले को लेकर जबलपुर के रवि यादव, उमेश सैनी, मुकेश सुमन, राजकुमार सेन, मुकेश बुरमन, राम नारायण पाठक, रविन्द्र यादव और सुनील नाहर ने लंबी लड़ाई लड़ी।
2010 का है मामला
यह मामला तब शुरु हुआ जब 23 जुलाई 2010 को स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का एसबीआइ में विलय किया गया। विलय के बाद बैंक ने स्थायी कर्मचारियों को तो सेवा में लिया, लेकिन इन दैवेभो कर्मचारियों की सेवाएं बिना किसी पूर्व सूचना या वैधानिक प्रक्रिया के समाप्त कर दी। यह निर्णय औद्योगिक विवाद अधिनियम और अधिसूचना दोनों का उल्लंघन था।
एसबीआइ ने दायर की थी विशेष याचिका
सीजीआइटी ने 2014 में अपने आदेश में कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय दिया। एसबीआइ ने इस फैसले को चुनौती दी। हाईकोर्ट की एकलपीठ ने कर्मचारियों को चार लाख मुआवजा देने का आदेश दिया। फिर दैवेभो कर्मियों की अपील पर युगलपीठ ने 2019 में फैसला पलटते हुए दैवेभो कर्मियों के पक्ष में निर्णय दिया। इस आदेश पर एसबीआइ ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की थी।