आजकल मरीज खुद डॉक्टर से पूछने लगे हैं कि उन्हें एलोपैथिक दवाइयां लेनी चाहिए या आयुर्वेदिक। साथ ही एलोपैथिक डॉक्टर भी अब केवल दवा नहीं बल्कि योग, दिनचर्या और आहार पर काम करने की सलाह दे रहे हैं। उनका मानना है कि इलाज के साथ इन उपायों को भी अपनाया जाता है तो मरीज की सेहत में सुधार देखने को मिलता है। पारम्परिक आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति भी अब हाईटेक हो रही है।
राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान सहित कई संस्थान अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिसिस की मदद से बीमारी और मरीज की प्रकृति के अनुसार इलाज बता रहे हैं। ये स्थिति देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है जब राज्य सरकार को इंटीग्रेटिव (Integrative Medicine) हेल्थकेयर मॉडल को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसे वेलनेस सेंटर होने चाहिए जहां एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, योग और अन्य चिकित्सा पद्धतियों के डॉक्टर एक ही छत के नीचे इलाज करें।
क्या है इंटीग्रेटिव मेडिसिन (What is Integrative Medicine)
यह एक समग्र पद्धति है जिसमें एलोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, योग और ध्यान जैसी विधाओं का संतुलित, वैज्ञानिक और संयोजित रूप से उपयोग होता है। इसमें केवल बीमारी नहीं मरीज की पूरी जीवनशैली, मानसिक स्थिति, नींद, आहार और तनाव के स्तर पर भी ध्यान दिया जाता है। यह पुरानी बीमारियों, मानसिक तनाव, दवा के साइड इफेक्ट्स और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है।
एसएमएस अस्पताल में चल रहा सेंटर
एसएमएस अस्पताल में इंटीग्रेटिव वेलनेस (Integrative Medicine) सेंटर की दिशा में काम हो रहा है। यहां एलौपेथी चिकित्सा के साथ ही बांगड परिसर में यूनानी, होम्योपैथी और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति से इलाज उपलब्ध करवाया जा रहा है। यहां योग सेंटर में कक्षाएं भी संचालित होती हैं। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान की ओर से भी रेलवे अस्पताल में आयुर्वेद इलाज की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है।
क्यों जरूरी है यह मॉडल
– मरीज को बेहतर इलाज मिलेगा। – अनावश्यक दवाओं से बचाव होगा। – इलाज की लागत भी घटेगी। – हेल्थ सेक्टर पर दबाव भी कम होगा।