राजस्व अमला में शामिल पटवारी व राजस्व निरीक्षण (आरआइ) मिलकर अपने-अपने क्षेत्र व हल्का नंबर में खेत की नरवाई जलाने के प्रकरण में पुलिस के पास प्रतिवेदन व जांच रिपोर्ट तैयार कर एफआइआर दर्ज कराने में लगे हुए है। गौरतलब है कि कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने नरवाई जलाने के लिए प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किया था। जिला प्रशासन के पास भी तकरीबन 350 से ज्यादा शिकायतें पहुंची है।
राजस्व विभाग के प्रतिवेदन पर पुलिस एफआइआर दर्ज कर रही है। पुलिस जो प्रकरण दर्ज कर रही है, वह धारा 223, 287 बीएनएस के तहत है। कलेक्टर ने जिन कार्यों पर रोक लगाई है, उसका उल्लंघन करना व आग लगाने की लापरवाही से कोई नुकसान व जनहानि होने की आशंका से यह धारा संबंधित है। बताया जा रहा है कि जिनके पास दो एकड़ से कम जमीन है, उन पर 2500 रुपए पर्यावरण क्षति पूर्ति अर्थदंड, दो एकड़ से अधिक और 5 एकड़ से कम जमीन पर 5000 रुपए तथा पांच एकड़ से अधिक जमीन पर 15000 रुपए तक का अर्थदंड लगाया जाएगा।
किसानों का तर्क कुछ अलग ही है। किसानों का कहना है कि ज्यादातर स्थानों पर गेहूं की फसल हार्वेस्टर से काटी जाती है। इससे डेढ़ से दो फीट तक खेत में गेहूं के पौधे के सूखे डंठल बचते हैं। इसकी सफाई व उस कचरे को हटाने के लिए किसान को काफी समय व पैसा देना पड़ता है। नरवाई जलाने के बाद वह सीधे खेत को बखरकर उसमें दूसरी फसल की बोनी कर देते हैं।
जिला प्रशासन ने प्रतिबंध के साथ ही जगह-जगह नरवाई ना जलाने को लेकर कई कार्यशाला का आयोजन किया है। सब स्वायलर यंत्र व नरवाई प्रबंधन तकनीक का किसानों के समक्ष कृषि विभाग प्रदर्शन कर रहा है तथा यह भी बताया जा रहा है कि कैसे गेहूं के पौधे के कचरे को खाद में कैसे बदल सकते हैं। लगातार जिले भर में किसानों को जागरूक करने का कार्य किया जा रहा है। हालांकि इसके बाद भी किसान लापरवाही बरत रहे हैं।