निजी एंबुलेंस का कारोबार बढ़ा
छतरपुर शहर में ही 50 से अधिक निजी एंबुलेंस चल रही हैं, जो मरीजों से मनमाने तरीके से फीस वसूलती हैं। इनमें से अधिकतर एंबुलेंस में ना तो वैध दस्तावेज होते हैं और ना ही चिकित्सा उपकरण और सेवाएं सही ढंग से उपलब्ध होती हैं। मरीजों के परिजनों से ये एंबुलेंस संचालक मनमानी फीस लेते हैं, जो कहीं न कहीं स्वास्थ्य सेवाओं में कमी और मरीजों के लिए असुविधा का कारण बन रहा है।
कमीशन का नेटवर्क
इन निजी एंबुलेंस संचालकों के द्वारा कमीशन के तौर पर भी भारी राशि वसूल की जाती है। झांसी रेफर होने वाले मरीजों से एंबुलेंस संचालक 30 प्रतिशत तक कमीशन लेते हैं और मरीजों को ऐसे डॉक्टरों के पास भेजते हैं जिनकी सेटिंग उनके साथ होती है। इस खेल से मरीज और उनके परिजन दोनों ही परेशान हो रहे हैं, जबकि इन एंबुलेंसों में जरूरी चिकित्सा उपकरण और सुविधाएं भी नहीं होती हैं।
पकड़ी गई थी 9 अवैध एंबुलेंस
पिछले वर्ष तात्कालीन आरटीओ अधिकारी विक्रम जीत सिंह कंग और उनकी टीम ने जिला अस्पताल और निजी अस्पतालों के पास प्राइवेट एंबुलेंस की चेकिंग की थी। इस चेकिंग में 9 एंबुलेंस वाहनों को पकड़ा गया, जो बिना फिटनेस प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेजों के चल रही थीं। इन वाहनों को जब्त कर लिया गया और एंबुलेंस मालिकों को आगाह किया गया कि वे सभी आवश्यक दस्तावेजों के साथ एंबुलेंस चलाएं। लेकिन इस कार्रवाई के बावजूद सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है, और निजी एंबुलेंस का कारोबार बेखौफ जारी है।
रेट सूची का नहीं हो रहा पालन
जिला स्वास्थ्य विभाग के पास निजी एंबुलेंस का कोई भी पंजीकरण नहीं है। कोरोना काल में यह मुद्दा उठने के बाद तात्कालीन कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह ने एक रेट सूची भी निर्धारित की थी, लेकिन उसका पालन किसी भी विभाग द्वारा नहीं किया जा रहा है। इससे यह साबित होता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की निगरानी और नियंत्रण की व्यवस्था नहीं है, जिससे मरीजों को उच्चतम गुणवत्ता की सेवाएं प्रदान करना मुश्किल हो रहा है।
जल्द होगी कार्रवाई
मरीजों का परिवहन करने के लिए एंबुलेंस संचालकों को पंजीकरण कराना अनिवार्य है। यदि बिना पंजीकरण के एंबुलेंस चल रही हैं, तो हम इसकी जांच करेंगे और आवश्यक कार्रवाई करेंगे।डॉ. आरपी गुप्ता, सीएमएचओ, छतरपुरपत्रिका व्यूप्राइवेट एंबुलेंस संचालकों का यह कारोबार स्वास्थ्य सेवाओं को खतरे में डाल रहा है, क्योंकि इन गाडि़यों में न तो उचित चिकित्सा उपकरण हैं, और न ही कोई नियमित जांच की जाती है। स्वास्थ्य विभाग और संबंधित अधिकारियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे इस स्थिति पर तुरंत ध्यान देंगे और इसे सुधारने के लिए ठोस कदम उठाएंगे, ताकि मरीजों को बिना किसी डर और परेशानी के बेहतर चिकित्सा सुविधाएं मिल सकें।