194 पंजीकृत संस्थाएं, पर 132 ही चल रही, वो भी आधी निष्क्रिय
छतरपुर जिले में विशेष जरूरतमंद बच्चों के लिए काम करने वाली 194 संस्थाओं ने ऑनलाइन पंजीकरण कराया था, जिनमें से 132 को संचालन की अनुमति दी गई। पर इनमें से अधिकांश संस्थाएं या तो निष्क्रिय हैं या सेवा की जगह कारोबार चला रही हैं। स्कूल शिक्षा विभाग के अंतर्गत सिर्फ 20 संस्थाएं स्पेशल बच्चों के लिए कार्यरत हैं, जिनका फोकस भी सीमित है।
सीडब्ल्यूएसएन योजना, जमीनी स्तर पर ‘निल बटे सन्नाटा’
सीडब्ल्यूएसएन योजना के तहत राज्य स्तर पर लाखों बच्चों की पहचान तो की गई है, पर छतरपुर में योजना अधर में है। सरकारी स्कूलों में ब्रेल लिपि, संसाधन शिक्षक और समुचित वातावरण का घोर अभाव है। जिला स्तर पर दर्जनों स्कूलों में यह योजना सिर्फ दिखावे तक सीमित है। स्कूलों में इन बच्चों के लिए न तो विशेष पाठ्यक्रम हैं और न ही प्रशिक्षित शिक्षक।
3500 रुपए की टीएलएम किट सिर्फ फाइलों में, 2 बार हुए कार्यक्रम
विशेष बच्चों को शैक्षणिक सामग्री (टीएलएम किट) के लिए 3500 रुपए प्रतिवर्ष की व्यवस्था है। साथ ही परिवहन भत्ता और स्टायफंड जैसी कई आर्थिक सहायता देने का प्रावधान है, लेकिन जिले में न तो ये किट समय पर वितरित हुईं और न ही जागरूकता या प्रशिक्षण के लिए कोई प्रभावी कार्यक्रम चला। पूरे वर्ष सिर्फ दो कार्यक्रम आयोजित किए गए।
दृष्टिबाधित बच्चों के लिए ब्रेल नहीं, हॉस्टल सिर्फ एक, सीटें सिर्फ 50
छतरपुर में विशेष बच्चों के लिए मात्र एक हॉस्टल है, जिसमें सिर्फ 50 सीटें हैं। उसमें भी दृष्टिबाधित, अस्थिबाधित, बौद्धिक और अन्य श्रेणियों के सभी बच्चे एकसाथ रखे जाते हैं। ब्रेल लिपि जैसी बुनियादी सुविधा तक शासकीय स्कूलों में उपलब्ध नहीं है। जबकि अन्य जिलों की तुलना में यहां जरूरत कहीं ज्यादा है।
संस्थाएं जिम्मेदारी से भागीं, डीपीसी ने मानी सीमाएं
जिले में दृष्टिबाधित छात्रों की देखभाल करने के लिए कोई संस्था सामने नहीं आ रही। सीटें सीमित हैं, अभिभावक बच्चों को हॉस्टल भेजने से हिचकते हैं और दृष्टिबाधित बच्चों की संख्या चिन्हांकित होने के बावजूद व्यवस्थाएं नहीं बन पाईं। अरुण शंकर पांडेय, जिला परियोजना समन्वयक