रायपुर निवासी दंपती का विवाह नवंबर 2005 में हुआ था। कुछ वर्षों बाद पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दायर करते हुए आरोप लगाया कि पत्नी का व्यवहार शादी के कुछ ही दिनों बाद बदल गया था। वह संयुक्त परिवार में रहने से इंकार करती थी।
पति का दावा था कि पत्नी ने उसकी सहमति के बिना गर्भपात करा लिया और दूसरी बार गर्भवती होने पर धमकी दी कि यदि पति ने परिवार को अलग नहीं किया तो फिर से गर्भपात करा लेगी। पति ने इसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता बताते हुए तलाक की मांग की थी।
पत्नी ने पति के सभी आरोपों से इंकार किया। उसने कहा कि पति शराब पीकर मारपीट करता था और जबरन दवा देकर दो बार उसका गर्भपात कराया। इलाज के लिए डॉक्टर के पास भी नहीं ले गया। पत्नी ने बताया कि वर्ष 2015 में पति ने उसे मायके छोड़ दिया और तभी से वह वहीं रह रही है।
फैमिली कोर्ट ने भी पति के आरोपों को गलत पाया था
परिवार न्यायालय में भी पति आरोपों को प्रमाणित नहीं पाया और उसका तलाक का आवेदन खारिज हो गया था। पति ने इस फैसले को
हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने सुनवाई के बाद कहा कि जब पति ने कथित क्रूरता को माफ कर पत्नी के साथ दोबारा रहना स्वीकार किया था, तो अब उन्हीं आरोपों को आधार पर तलाक नहीं मांगा जा सकता।