scriptअनूठी परंपरा – यहां मांझे से नहीं डोरी से उड़ता है ‘चंदा’ | Unique tradition - Here 'Chanda' flies not with a string but with a thread | Patrika News
बीकानेर

अनूठी परंपरा – यहां मांझे से नहीं डोरी से उड़ता है ‘चंदा’

बीकानेर में नगर स्थापना दिवस पर ‘चंदा’ उड़ाने की प्राचीन एवं अनूठी परंपरा है। करीब तीन से चार फीट वृत्ताकार आकार में बनाए जाने वाले चंदा को मांझे से नहीं डोरी से उड़ाया जाता है। बड़े आकार के इन चंदा पर चंदा कलाकारों की ओर से पारंपरिक रूप से दोहे, प्रेरक संदेश भी लिखे जाते है। वहीं अपने मन के भावों को चित्रों के माध्यम से भी उकेरा जाता है। नगर स्थापना दिवस पर होने वाली पतंगबाजी के दौरान चंदा कलाकार इन चंदा को पारंपरिक गीत और दोहो के गायन के बीच उड़ाते है।

बीकानेरApr 28, 2025 / 11:01 pm

Vimal

बीकानेर.

रियासतकाल से बीकानेर स्थापना दिवस पर पतंगबाजी की परंपरा है। शहर में आखाबीज और आखातीज के दिन पतंगबाजी होती है। पतंगबाजी के दौरान शहर के बाजार और सड़कें सूनी तथा घरों की छतें पतंगबाजों के समूहों से भरी रहती है। शहर का पूरा आकाश रंग बिरंगी पतंगों से आच्छादित रहता है। हर तरफ ‘बोई काट्या है फेर उड़ा’, ‘थ्हारै नाकड़ ऊपर घूम रयो घुमार रयो’ तथा ‘ फेर उड़ा’ के स्वरों की गूंज रहती है। बच्चों से बुजुर्ग तक और महिलाएं पतंगबाजी में मशगूल रहते है। नगर स्थापना दिवस पर पतंगबाजी के साथ-साथ पारंपरिक रूप से ‘चंदा’उड़ाने की भी परंपरा है। बड़े आकार के इन ‘चंदा‘ को किसी मांझे से नहीं ब​ल्कि डोरी से उड़ाया जाता है।नगर स्थापना दिवस पर घरों की छतों पर चंदा उड़ाने के साथ-साथ नगर में चंदा महोत्सव का भी आयोजन होगा।
दोहे, संदेश और चित्र

पारंपरिक रूप से बनाए जाने वाले ‘चंदा’ पर दोहे, श्लोगन, प्रेरक संदेश और चित्र उकेरने की भी परंपरा है। चंदा कलाकार अपनी मन की भावनाओं को चंदा पर दोहों और चित्रों के माध्यम से व्यक्त करते है। नगर स्थापना दिवस के लिए चंदा कलाकार करीब एक महीने पहले ही इस कार्य में जुट जाते है। समसामयिक विषयों और को भी चंदा पर विशेष स्थान दिया जाता है।
ऐसे बनता है ‘चंदा’

चंदा कलाकार कृष्ण चंद्र पुरोहित के अनुसार पुरानी बहियों के कागज, कार्ड शीट से करीब तीन से चार फीट वृत्ताकार आकार में चंदा बनाए जाते है। ताड़ी के लिए सरकंडे की डंडियों का उपयोग किया जाता है। चंदा के चारो तरफ अबरी अथवा कपड़ा लगाया जाता है। पूंछ में केशरियां रंग का पेचा बांध दिया जाता है। चंदा उड़ाने के लिए डोरी का उपयोग किया जाता है।
ऐतिहासिक व समसामयिक विषयों के चित्र

चंदा कलाकार बृजेश्वर लाल व्यास के अनुसार चंदा पर बीकानेर के राजा-महाराजाओं के चित्रों के साथ कलात्मक हवेलियां, जूनागढ़, मंदिर आदि के चित्र बनाए जाते है। वहीं आमजन को जागरुक करने और प्रेरणा देने वाले चित्र भी चंदा पर उकेरे जाते है। इनमें पशु प​क्षियों की सेवा, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, पौधरोपण, बाल विवाह रोकथाम, प्ला​स्टिक थैलियों का बहिष्कार, सिंगल यूज प्ला​स्टिक का बहिष्कार, चाइनीज मांझे का बहिष्कार आदि से जुड़े चित्र भी बनाए जाते है।
गवरा दादी पून दे …

चंदा उड़ाने के दौरान पारंपरिक रूप से गीत-दोहों के गायन की भी परंपरा है। चंदा कलाकार अनिल बोड़ा के अनुसार चंदा उड़ाने के दौरान बच्चों से बुजुर्ग तक ’ गवरा दादी पून दे, टाबरियां रा चंदा उड़े’, ‘आकाशा में उडेम्हारों चंदा, लखमीनाथ म्हारी सहाय करै‘ सहित अन्य दोहों का गायन कर नगर सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना की जाती है।

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