देशनोक स्थित करणी माता मंदिर में पूजा-अर्चना करते पीएम। (फोटो- पत्रिका)
दिनेश कुमार स्वामी बीकानेर। देशनोक की करणी माता सिर्फ देवी नहीं, बल्कि इस रेगिस्तानी अंचल की रक्षा व श्रद्धा का प्रतीक हैं। जिस तरह जैसलमेर की तनोट माता को ‘सैनिकों की देवी’ कहा जाता है, वैसे ही करणी माता को बीकानेर-मारवाड़ क्षेत्र की रक्षक देवी माना जाता है। पीएम मोदी ने गुरुवार को करणी माता मंदिर में दर्शन कर पूजा की। इसके बाद उन्होंने जनसभा में कहा ‘करणी माता का आशीर्वाद लेकर आया हूं। इससे देश के लिए मेरा संकल्प और मजबूत हुआ है।’ वह पहले पीएम हैं, जिन्होंने करणी माता के मंदिर में दर्शन किए।
करणी माता मंदिर का गर्भगृह देवी की उस प्रतिमा को समर्पित है, जिस पर सिंदूर का चोला चढ़ा होता है। महिलाएं अखंड सौभाग्य और मनोकामना पूर्ति के लिए सिंदूर व सुहागन की सामग्री चढ़ाती हैं। यह मंदिर दुनिया भर में उन सैकड़ों चूहों की उपस्थिति के कारण भी प्रसिद्ध है, जिन्हें ‘काबा’ कहा जाता है। पीएम मोदी के मंदिर आने को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से भी जोड़ा जा रहा है।
देशनोक स्थित करणी माता मंदिर। (फोटो- पत्रिका)
करणी माता: अभेद्य रक्षा कवच
बीकानेर के गढ़ की नींव करणी माता के हाथों रखी गई थी। मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के शासकों ने कराया और करणी माता को रियासत की अभेद्य रक्षा कवच के रूप में प्रतिष्ठित किया। युद्ध में जाने से पहले और संकट की घड़ी में देवी का आशीर्वाद लेना एक परंपरा रही है। यह आस्था और दृढ़ हुई, जब पिछले दिनों पाकिस्तान से नाल को लक्ष्य करके दागी गई मिसाइल पूगल क्षेत्र की सीमा पर ही जिंदा गिर गई।
तनोट माता मंदिर। (फोटो- पत्रिका)
तनोट माता: सीमा पर विश्वास की देवी
जैसलमेर से 120 किमी दूर स्थित तनोट माता मंदिर सेना और लोगों के लिए आस्था और सुरक्षा का प्रतीक है। 1965 व 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने मंदिर को निशाना बनाया, लेकिन मान्यता है कि 300 से अधिक बम बेअसर हो गए। मंदिर नष्ट नहीं हुआ और सैनिक सुरक्षित रहे। तब से तनोट माता को ‘सैन्य देवी’ कहा जाने लगा। आज भी सेना इस मंदिर की देखरेख करती है। हर जवान वहां से आशीर्वाद लेकर ही आगे बढ़ता है।