चुनौतियों के बावजूद लगेंगे थर्मल प्लांट
3200 मेगावाट की जरूरत के लिए प्रस्तावित सभी प्लांट कोयला आधारित होंगे। इन्हें प्रदेश के किसी भी कोने में लगाया जा सकेगा। यह विकल्प निविदा में दिया है। पांच साल में तैयार करना होगा। ऊर्जा मामलों के जानकार राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि ये प्लांट ऐसे समय में बनाए जाने हैं जब वैश्विक स्तर पर थर्मल प्लांट को दुनिया कम से कम लगाने की कवायद में जुटी है। ये प्लांट पर्यावरण के लिए चुनौती पैदा कर रहे हैं। जैसे सारणी के प्लांट से फ्लाईऐश का भंडार पड़ा है। नदी-नालों और तालाबोंकी हालत खराब है।
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प्रदेश के पास 26,700 मेगावाट बिजली है। पीक सीजन में मांग 17 हजार से 20 हजार तक ही पहुंच रही है इसलिए सरप्लस बिजली है। खास यह है कि सार्वजनिक संसाधनों से उत्पादित बिजली 5 हजार से 6 हजार मेगावाट ही है। बाकी बिजली एनटीपीसी व निजी प्लांटों से खरीदी जा रही है। ऐसे में केंद्र सरकार व ऊर्जा क्षेत्र की प्राइस वाटर कूपर संस्था ने
मप्र को सलाह दी है कि 2029 के बाद बिजली की जरूरत बढ़ेगी।