पर अब ये शब्द केवल कल्पना हैं, क्योंकि भीखाराम ने देश के लिए वो कुर्बानी दी, जिसे सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। सात दिन तक कैद में रहने के दौरान उनके साथ जो हुआ, वो मानवता को शर्मसार करने वाला था। आंखें, नाक, कान काट दिए गए। शरीर पर जले के निशान थे। लेकिन वे झुके नहीं।
पाकिस्तान ने बंधक बनाकर यातनाएं दी
करगिल युद्ध में बाड़मेर के पातासर गांव निवासी भीखाराम मूढ़ उन छह लोगों में शामिल थे, जिनको पाकिस्तान ने बंधक बनाकर यातनाएं दी और उनके अंग काट लिए थे। जाबांज भीखाराम ने लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के साथ रहते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए।
भीखाराम 26 अप्रैल 1995 को जाट रेजिमेंट में भर्ती हुए। मई 1999 में करगिल में गश्ती दल में शामिल थे। इस दौरान पूरी मुस्तैदी से ड्यूटी की। 14 मई को लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के साथ छह जवानों को पाकिस्तान ने बंधक बना लिया। इसके बाद उन्हें अमानवीय यातनाएं दी। नृशंसतापूर्वक आंख, नाक व गुप्तांग काटे गए। सात दिन बाद इनके पार्थिव शरीर मिले।
स्कूल का नाम शहीद के नाम
शहीद भीखाराम की अंतिम यात्रा में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई लोग पहुंचे थे। यहां शहीद के नाम पर स्कूल है, जहां उनकी प्रतिमा लगी है। हर साल शहीद को श्रद्धांजलि दी जाती है।
शादी को हुए थे केवल सात साल
भीखाराम के पिता आरएसी पुलिस में थे। उन्होंने जोधपुर में नौकरी की। भीखाराम की शादी 1994 में भंवरी देवी से हुई। भीखाराम शादी के सात साल बाद ही शहीद हो गए। भीखाराम के शहीद होने के समय पुत्र भूपेंद्र ढाई साल का था, जो अब आरएएस की तैयारी कर रहा है।
सात महीने पूर्व घर से गए थे ड्यूटी पर
भीखाराम शहादत से सात महीने पूर्व घर से छुट्टी काटकर रवाना हुए थे। उस वक्त भी घर से युद्ध की बात कहकर निकले थे, उस समय मोबाइल नहीं था। इसलिए किसी की बात नहीं हो पाती थी। वीरांगना भंवरी देवी बताती हैं कि वह दिन आज भी याद है। 26 साल बाद भी नहीं भूली हूं। ऐसे लगता है कि सारा दृश्य आंखों के सामने है।