बाड़मेर-जैसलमेर दोनों जिलों में हीटवेव नई आपदा बन रही है। बीते दो दशक में कोयला, तेल और अब सोलर हब बनने से यहां जमीनें अधिग्रहीत हो रही है। यहां रेगिस्तान में पनपे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। इधर, कोलतार की सड़कों का जाल बिछने से भी पेड़ कट रहे हैं। इसके बदले पेड़ लगाने के दावे तो किए जा रहे हैं, लेकिन वास्तव में कटने वाले पेड़ों के मुकाबले यह एक-दो प्रतिशत भी नहीं है।जहर में तलाशें जिंदगी की ऑक्सीजन
जोधपुर, पाली, बालोतरा, बिठूजा और जसोल से उद्योगों से निस्तारित होने वाला पानी लूणी नदी में बहाया जा रहा है। इसे कच्छ के रण तक ड्रेन बनाकर ले जाया जाए और बीच में पूरे इलाके में वनीकरण की योजना लागू की जाए। इस योजना के तहत लूणी नदी के दोनों किनारों पर सघन पौधरोपण हो, तो यह पूरे रेगिस्तान में एक बड़ी पर्यावरण संतुलन की पट्टी बन सकती है।अहमदाबाद मॉडल पर कम होगी हीटवेव
अहमदाबाद में वर्ष 2009 के बाद हीटवेव बढ़ने पर पौधे और पेड़ लगाए गए, जिससे हीटवेव में 4 डिग्री तक की कमी आई। लूणी का क्षेत्रफल रेगिस्तान में लगभग 300 किलोमीटर है। इतनी लंबी हरियाली की पट्टी बनती है तो यह बड़े इलाके में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ा सकती है। इससे हीटवेव का असर कम होने की संभावना अधिक है।एक्सपर्ट व्यू : हीटवेव कम होना तय
हीटवेव को कम करने का एकमात्र तरीका है सघन पौधरोपण। इसके लिए लूणी के पूरे बहाव क्षेत्र के पास यदि लाखों पेड़ पनपते हैं, तो यह तय है कि पर्यावरण संतुलन स्थापित होगा। रेगिस्तान में इतने पेड़ लगाने की जगह मिलना भी बड़ी बात है। अहमदाबाद मॉडल ने इसे सिद्ध किया है। पानी को थोड़ा ट्रीट कर पौधों को दिया जाए तो यह हराभरा इलाका अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।- डॉ. महावीर गोलेच्छा, पर्यावरणविद्