नागौर जिले में बीकानेर रोड पर बने रेलवे ओवरब्रिज पर 70 से 80 डिग्री के दो बेहद तीव्र मोड़ बने हुए हैं। सड़क इंजीनियरिंग के नजरिए से इतने तीखे मोड़ पर वाहन का संतुलन बिगड़ना लगभग तय है, खासकर अगर मोड़ पर ‘सुपर एलिवेशन’ यानी गाड़ियों को संतुलित रखने वाली ढलान न दी गई हो।
क्या कहते हैं इंजीनियर
इंजीनियर बताते हैं कि सुपर एलिवेशन का मतलब मोड़ पर सड़क को थोड़ा झुका कर डिजाइन करना होता है, ताकि गाड़ी की गति के कारण लगने वाला केन्द्रीय बल वाहन को बाहर की तरफ धकेलने के बजाय उसे मोड़ पर स्थिर रखे। लेकिन इस पुल पर यह जरूरी ढलान नहीं दी गई। नतीजा यह है कि तेज गति में वाहन अचानक एक तरफ झुक जाते हैं और दुर्घटना हो जाती है।
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इस खामी के चलते जनवरी 2023 में एक दिल दहलाने वाला हादसा हुआ था। एक एसिड से भरा टैंकर मोड़ पर पलट गया और उसमें से रिसे घातक एसिड में झुलसकर पांच बाइक सवारों की दर्दनाक मौत हो गई। यह घटना पूरे इलाके में दहशत और आक्रोश का कारण बनी। बावजूद इसके, पुल के डिजाइन में सुधार के कोई बड़े कदम नहीं उठाए गए।
क्या है इंजीनियरों की राय
इंजीनियरिंग विशेषज्ञ साफ कहते हैं कि इतने तीव्र मोड़ पर बिना सुपर एलिवेशन के पुल बनाना सीधी-सी बात में नियमों का उल्लंघन है। सड़क डिजाइन के मानक (IRC कोड आदि) कहते हैं कि तीखे मोड़ पर ढलान देना अनिवार्य होता है। इसके बिना भले ही पुल मजबूत हो, वह सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।
बाड़मेर का चौहटन रोड ओवरब्रिज: कम चौड़ाई, खतरनाक मोड़
राजस्थान में ऐसा ही एक और उदाहरण बाड़मेर जिले के चौहटन रोड पर बना रेलवे ओवरब्रिज है। यहां भी इंजीनियरिंग की लापरवाही से लोगों की जान जोखिम में डाल दी गई। यह पुल कम से कम 10 मीटर चौड़ा होना चाहिए था, ताकि दो तरफ से आने-जाने वाले भारी वाहनों को सुरक्षित रास्ता मिले। लेकिन इसे सिर्फ 7.4 मीटर चौड़ाई में बना दिया गया। इससे ट्रक और बस जैसी बड़ी गाड़ियां एक साथ निकलना तो दूर, मोड़ पर भी फंसने लगती हैं।
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यह केवल चौड़ाई की कमी तक सीमित नहीं है। ओवरब्रिज पर चढ़ाई और उतराई के हिस्से में सुरक्षित घुमावदार मोड़ देने की बजाय इसे लगभग 90 डिग्री का तीव्र मोड़ दे दिया गया है। इस मोड़ पर वाहन को रोकना या मोड़ना दोनों ही मुश्किल हो जाता है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह पुल लगातार दुर्घटनाओं का हॉटस्पॉट बन चुका है। कई बार ट्रक या बसें यहां मोड़ काटते समय पलटने की कगार पर पहुंच जाती हैं।
हादसों के आंकड़े और स्थानीय गुस्सा
दोनों पुलों को लेकर स्थानीय लोग कई बार सड़क विभाग और रेलवे को शिकायत कर चुके हैं। नागौर के हादसे के बाद कुछ समय तक विभागीय स्तर पर जांच के आदेश भी दिए गए थे। लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं हुआ। स्थानीय जनप्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि पुलों का डिजाइन बनाते समय यातायात का दबाव, वाहन का आकार और सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई। निर्माण एजेंसियों और ठेकेदारों की लापरवाही के बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
सरकार और विभाग की जिम्मेदारी
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत में हर साल हजारों लोग सड़क इंजीनियरिंग की गलतियों की वजह से जान गंवाते हैं। पुलों और फ्लाईओवरों का डिजाइन केवल निर्माण लागत या नक्शे के हिसाब से नहीं, बल्कि यातायात के सुरक्षित संचालन के हिसाब से होना चाहिए। नागौर और बाड़मेर के ये पुल सबक हैं कि खराब इंजीनियरिंग लोगों की जान ले सकती है। जरूरत इस बात की है कि विभाग केवल हादसा होने पर जांच या मरम्मत न करे, बल्कि निर्माण की शुरुआत से ही सुरक्षा को प्राथमिकता दे।