घटना की शुरुआत: छात्रों का प्रश्न पूछना बना अपराध
प्राप्त जानकारी के अनुसार यह घटना 25 जुलाई की है। पीड़ित छात्राएं 14 वर्षीय प्रतिज्ञा गुप्ता (पुत्री: अमिता देवी) और 13 वर्षीय यामिनी (पुत्री: संतोष कुमारी) नागापुर मजरा हड़ाहा स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय में कक्षा 6 की छात्राएं हैं।
परिजनों के अनुसार, उस दिन शिक्षक रामयश गौतम कक्षा में उपस्थित नहीं थे। आवश्यक जानकारी के लिए प्रतिज्ञा और यामिनी अन्य शिक्षक से प्रश्न पूछने गईं। कुछ देर बाद जब राम यश कक्षा में लौटे तो उन्होंने छात्राओं से कॉपी मंगाई और पूछताछ की कि वे अन्य शिक्षक के पास क्यों गई थीं। छात्राओं द्वारा जवाब देने पर राम यश गौतम, परिजनों के अनुसार, अचानक आक्रोशित हो गए और कथित तौर पर दोनों छात्राओं की क्रिकेट बैट से पिटाई कर दी। इतना ही नहीं, आरोप यह भी है कि उन्होंने छात्राओं को कक्षा से बाहर निकालकर विद्यालय से भगा दिया।
विद्यालय से निकाले जाने का आरोप, टीसी देकर खदेड़ा गया
पिटाई से डरी-सहमी छात्राएं घर पहुंचीं और अपनी माताओं को घटना की जानकारी दी। अगले दिन, यानी 26 जुलाई को, अमिता देवी और संतोष कुमारी ने विद्यालय पहुंचकर प्रधानाचार्य सुमन यादव से घटना की शिकायत की। शिकायत करने पर उन्हें आशा थी कि प्रधानाचार्य निष्पक्ष जांच कर उचित कार्रवाई करेंगे, लेकिन परिजनों का आरोप है कि प्रधानाचार्य ने न केवल शिक्षक का पक्ष लिया, बल्कि खुद भी छात्राओं से अभद्र व्यवहार किया और थप्पड़ मारे। इसके बाद प्रधानाचार्य ने दोनों बालिकाओं को विद्यालय से निकालते हुए स्थानांतरण प्रमाणपत्र (टीसी) थमा दी।
मानसिक रूप से व्यथित हैं छात्राएं और परिजन
घटना के बाद से ही छात्राएं गहरे मानसिक तनाव में हैं। वे न केवल स्कूल जाने से डर रही हैं, बल्कि अपने आत्मसम्मान को लेकर भी आहत महसूस कर रही हैं। परिजनों का कहना है कि गरीब घरों से होने के बावजूद उन्होंने अपनी बेटियों को पढ़ाने की ठानी थी, लेकिन विद्यालय के इस व्यवहार से वे स्तब्ध हैं। अमिता देवी का कहना है, “हमने अपनी बेटी को पढ़ने भेजा था, न कि मार खाने। शिक्षक को इतना हक किसने दिया कि वह बच्चों को इस तरह क्रिकेट बैट से पीटे?”
वहीं संतोष कुमारी कहती हैं, “प्रधानाचार्य से न्याय मांगने गए तो उन्होंने उल्टा थप्पड़ मारा और बच्चियों को स्कूल से निकाल दिया। अब कहां जाएं हम?”
पुलिस जांच में जुटी, शिक्षक से संपर्क नहीं
घटना की शिकायत टिकैत नगर कोतवाली में की गई है। प्रभारी निरीक्षक रत्नेश पांडेय ने बताया कि दोनों महिलाओं की ओर से अलग-अलग प्रार्थना पत्र प्राप्त हुए हैं और मामले की जांच के लिए एक पुलिस टीम को विद्यालय भेजा गया है। उन्होंने कहा, “मामले को गंभीरता से लिया गया है। पुलिस टीम द्वारा विद्यालय जाकर साक्ष्य संकलन किया जा रहा है। जांच के बाद जो भी तथ्य सामने आएंगे, उसी आधार पर विधिक कार्यवाही की जाएगी।” उधर, शिक्षक राम यश गौतम से संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।
प्रधानाचार्य का पक्ष: अभिभावकों के कहने पर दी गई टीसी
प्रधानाचार्य सुमन यादव ने इन आरोपों को निराधार बताया है। उनका कहना है कि छात्राओं की टीसी अभिभावकों के अनुरोध पर ही दी गई थी और अब किसी ने उन्हें भड़का दिया है। उन्होंने कहा, “मुझे किसी घटना की जानकारी नहीं थी। बच्चियों की टीसी माता-पिता की मांग पर दी गई। विद्यालय में इस तरह की कोई घटना नहीं घटी है। यह सब किसी के बहकावे का परिणाम हो सकता है।”
गांव में बढ़ रहा आक्रोश, शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल
इस घटना ने गांव में शिक्षा व्यवस्था पर कई गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि विद्यालयों में बच्चों को डर का माहौल दिया जा रहा है, जिससे वे शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं। कई अभिभावक अब अपने बच्चों को उक्त विद्यालय में भेजने को तैयार नहीं हैं। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि ने कहा, “यह घटना अगर सच है, तो अत्यंत निंदनीय है। बच्चों की सुरक्षा सबसे पहले है। इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए।”
कानूनी और बाल अधिकारों का उल्लंघन
भारत के बाल अधिकार कानूनों के तहत किसी भी छात्र को शारीरिक दंड देना अपराध की श्रेणी में आता है। राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 के तहत स्कूलों में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, शारीरिक दंड या मानसिक प्रताड़ना प्रतिबंधित है। यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो संबंधित शिक्षक और प्रधानाचार्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आपराधिक मुकदमा भी दर्ज हो सकता है।
न्याय की मांग और आगे की राह
फिलहाल, यह मामला पुलिस जांच के अधीन है और सच्चाई क्या है, यह आने वाले दिनों में सामने आएगा। लेकिन इस घटना ने शिक्षा के मंदिर में भरोसे को गहरी चोट दी है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन कितनी निष्पक्षता से जांच करता है और दोषियों को दंड दिलवाता है।