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रूस ने दी तालिबान को मान्यता, क्या है भारत की तैयारी

तालिबान ने अगस्त 2021 में अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। तब से तालिबानी सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने की कोशिश कर रही है। रूस तालिबान को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है।

भारतJul 04, 2025 / 10:43 am

Pushpankar Piyush

Vladimir Putin

Vladimir Putin

रूस (Russia) ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता दी है। रूस तालिबान को मान्यता देने वाला पहला देश बन गया है। साथ ही, रूस ने तालिबान को अपनी प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा दिया है।

यह साहसी कदम है

रूसी विदेश मंत्रालय ने बताया कि उसने अफगानिस्तान के नए राजदूत हसन से प्रमाण पत्र प्राप्त किया है। मंत्रालय ने कहा कि अफगान सरकार की आधिकारिक मान्यता द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देगी। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने कहा कि यह साहसी कदम है। साथ ही, अन्य देशों के लिए अच्छा उदाहरण है।

सर्गेई लावरोह ने दी पुतिन को सलाह

रूस के अफगानिस्तान में राजदूत दिमित्री झिरनोव ने राज्य चैनल वन टेलीविजन पर कहा कि तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता देने में विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की अहम भूमिका रही है। लावरोव की सलाह पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अफगानिस्तान की सरकार को मान्यता दी है। रूसी अधिकारियों ने हाल ही में अफगानिस्तान को स्थिर करने में मदद के लिए तालिबान के साथ जुड़ने की आवश्यकता पर जोर दिया है और अप्रैल में तालिबान पर प्रतिबंध हटा दिया।

अगस्त 2021 में तालिबान ने दोबारा हथियाई सत्ता

बता दें कि तालिबान ने अगस्त 2021 में अमेरिकी और नाटो बलों की वापसी के बाद अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। तब से तालिबानी सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने की कोशिश कर रही है, लेकिन महिलाओं के खिलाफ रवैये के कारण उन्हें वैश्विक मंच पर जगह नहीं मिल रहा। हालांकि, तालिबान ने कई देशों के साथ उच्च स्तरीय बातचीत की है। चीन और संयुक्त अरब अमीरात ने तालिबान सरकार के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए हैं।

शीत युद्ध के भंवर में फंसा था रूस

शीत युद्ध के समय सोवियत संघ (वर्तमान रूस) अफगानिस्तान में फंस गया था। उसने साल 1979 में अफगानिस्तान में अपनी सेना उतार दी थी, जिसके विरोध में अमेरिका ने पाकिस्तान के सहयोग से मुहजाहिदीनों की फौज तैयार की। पाकिस्तान-अमेरिकी समर्थित लड़कों ने रूस को अफगानिस्तान से पीछे हटने के मजबूर कर दिया। तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता हथयाई। 2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हमले के बाद अमेरिका ने एक बार फिर अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया। फिर तालिबान को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। लगभग दो दशक बाद जब 2020 में अमेरिकी फौजें वापस लौट गईं, उसी क्षण तालिबान ने दोबारा काबुल पर नियंत्रण कर लिया। रूस ने उसी तालिबान से दोस्ती कर ली है। सेंट्रल एशिया में रूस अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में दिख रहा है।

अफगानिस्तान में भारत का बहुत बड़ा स्टेक

भारत भी धीरे-धीरे सेंट्रल एशिया की जियो पॉलिटिक्स में एक्टिव होता दिख रहा है। चीन में SCO की मीटिंग में भारतीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने फगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए भारत का समर्थन दोहराया। रक्षामंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान में हमारी तत्काल प्राथमिकताओं में अफगान लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करना और अफगानिस्तान की समग्र विकासात्मक आवश्यकताओं में योगदान देना शामिल है।
बता दें कि भारत के लिए अफगानिस्तान सेंट्रल एशिया में दाखिल होने का रास्ता है। भारत इसी को देखते हुए ईरान और अफगानिस्तान होते हुए सेंट्रल एशिया में प्रवेश का रूट तैयार कर रहा है। भारत ने अफगानिस्तान में सैकड़ों अरब डॉलर के निवेश किए हैं। कुछ महीने पहले भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्त्री ने तालिबान सरकार के वरिष्ठ नेताओं संग बातचीत की।

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