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चीन के इस जल विद्युत स्टेशन से तिब्बती पहचान को बड़ा खतरा, जानिए क्या कहती है यह रिपोर्ट

Medog Hydropower Tibetan Identity Risk 2025:चीन का मेडोग जलविद्युत परियोजना तिब्बत की पवित्र नदी और सांस्कृतिक विरासत को खतरे में डाल रही है।

भारतAug 06, 2025 / 09:51 pm

M I Zahir

Medog Hydropower Tibetan Identity Risk 2025: चीन की ओर से तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो नदी पर बनाए जा रहे मेडोग जलविद्युत स्टेशन से तिब्बती पहचान को बड़ा खतरा (Medog Dam Tibet identity risk) पैदा हो गया है। ध्यान रहे कि इसे “सदी की परियोजना” कहा जा रहा है, लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक यह डैम (Tibetan cultural impact dam) तिब्बती सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और भौगोलिक पहचान (Medog hydropower geopolitical implications) को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है। इस रिपोर्ट को हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के कैनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट के रिसर्च फैलो जियानली यांग ने लिखा है, जिसे द डिप्लोमैट में प्रकाशित किया गया। यांग ने कहा कि इस परियोजना के पीछे विकास और स्वच्छ ऊर्जा का दावा है, लेकिन इसके पीछे तिब्बती समुदाय की भूमि और जीवनशैली की अनदेखी की जा रही है। रिपोर्ट में चीन की एक और मेगा परियोजना(China Tibet megadam environmental concerns), थ्री गोर्जेस डैम का उदाहरण दिया गया है। इस डैम के कारण 13 लाख से अधिक लोगों को विस्थापित किया गया था, ऐतिहासिक स्थल डूब गए थे, और पूरे इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचा था।

सामाजिक दर्द और ऐतिहासिक अलगाव

एक दिक्कत यह है कि लोगों को नाममात्र मुआवजा मिला और पुनर्वास के प्रयास भी अधूरे रह गए। इसके नतीजे आज भी सामाजिक दर्द और ऐतिहासिक अलगाव के रूप में सामने हैं।

तिब्बत की पवित्र नदी और सांस्कृतिक विरासत पर संकट

तिब्बतियों के लिए यारलुंग त्सांगपो सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि आध्यात्मिक मां के समान मानी जाती है। यह नदी कैलाश पर्वत से निकलती है और जिस स्थान पर डैम बन रहा है- यारलुंग त्सांगपो का ग्रेट बेंड -वह पेमाको नाम के पवित्र स्थान का हिस्सा है, जिसे आपदा के समय मानवता के शरण स्थल के रूप में वर्णित किया गया है। इस क्षेत्र को डुबोना न केवल गांवों को मिटाना है, बल्कि एक जीवित आध्यात्मिक मानचित्र को अपवित्र करना है।

संस्कृति और पहचान पर सीधा हमला

मेडोग क्षेत्र, तिब्बती संस्कृति और प्रकृति की शुद्धता का अंतिम गढ़ माना जाता है। जबरन विस्थापन का मतलब सिर्फ लोगों का शारीरिक स्थानांतरण नहीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक जड़ों को काटना है। यहां के मंदिर, ध्यानगुफाएं, तीर्थ यात्रा मार्ग और पवित्र पर्वत तिब्बती पहचान की जिंदा कड़ियां हैं, जिन्हें दोबारा बनाना या अन्यत्र स्थापित करना संभव नहीं है।

चुपचाप चल रहा है पूरा प्रोजेक्ट

जहां थ्री गोर्जेस डैम के विस्थापन के आंकड़े सार्वजनिक किए गए थे, वहीं यारलुंग त्सांगपो प्रोजेक्ट पूरी तरह चुप्पी में आगे बढ़ रहा है। यह चीन की तिब्बत नीति का हिस्सा है, जो विकास को असिमिलेशन (एकीकरण) से जोड़ती है, जिसमें शहरीकरण, पर्यटन और संसाधन दोहन प्राथमिकता में हैं

चीन के सामने एक बड़ा फैसला

एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के सामने अब दो रास्ते हैं या तो थ्री गोर्जेस की तरह लोगों को हटाकर शक्ति और समृद्धि के वादे करें, या तिब्बत को एक जीवंत सभ्यता के रूप में स्वीकार कर उसे सम्मान, संरक्षण और आवाज दें।

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