बलूचिस्तान: मानवाधिकार उल्लंघनों का गढ़
बलूचिस्तान लंबे समय से अलगाववादी आंदोलनों, भारी सैन्य उपस्थिति, और जबरन गायबियों के लिए जाना जाता रहा है।यहां आम नागरिकों को उठा कर ले जाने की घटनाएं आम हो गई हैं। मानवाधिकार समूहों, पत्रकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने कई बार इस पर गंभीर चिंता जताई है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल की कड़ी प्रतिक्रिया
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 8 जुलाई 2025 को बलूचिस्तान में हिंसा और गैर कानूनी हिरासत के मामलों की निंदा की थी। उन्होंने कहा था, पाकिस्तान को गुलजार बलूच और मेहरंग बलूच जैसे कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा करना चाहिए। तीन महीने से अधिक समय से हिरासत में रखे गए इन लोगों को बिना कानूनी प्रक्रिया के बंदी बनाना कानून का दुरुपयोग है। एमनेस्टी ने पाकिस्तान से निष्पक्ष जांच, न्यायेत्तर हत्याओं की समीक्षा और गैर-कानूनी अपहरण बंद करने की भी मांग की है।पाकिस्तानी सेना की भूमिका पर सवाल
बलूच मानवाधिकार समूहों का कहना है कि पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में छात्रों, कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को निशाना बना रही है। वे दावा करते हैं कि असहमति की आवाज दबाने के लिए जबरन गुमशुदगी एक नियमित रणनीति बन गई है। हालांकि, पाकिस्तानी सरकार इन आरोपों को सिरे से खारिज करती रही है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके उलट है। नागरिक समाज इन गतिविधियों पर लगातार सवाल उठाता आ रहा है।मानवाधिकार संगठनों की तीव्र प्रतिक्रिया
बलूचिस्तान में मुनीर अहमद की जबरन गुमशुदगी पर मानवाधिकार संगठनों की तीव्र प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक है।कई संगठनों की ओर से बार-बार चेतावनी के बावजूद अगर पाकिस्तान सेना ऐसे अभियान चला रही है, तो यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का खुला उल्लंघन है। यह मामला सिर्फ मुनीर अहमद का नहीं है, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों का दर्द है, जो बरसों से अपनों की वापसी का इंतजार कर रहे हैं।