उन्होंने कहा कि देवी अहिल्याबाई होल्कर रानी से महारानी और फिर लोकमाता कैसे बनी इसका एक बहुत बड़ा इतिहास है। उन्होंने उपस्थित महिलाओं को बताया कि अहिल्याबाई एक गरीब परिवार से रही हैं लेकिन वह शुरू से ही तेजस्वी ओजस्वी और शिव भक्त रही हंै। 8 साल की उम्र में जब वह शाम के समय मंदिर में संध्या आरती कर रही थी तब वहां राजा मल्हार राव होलकर पहुंचे थे। मंदिर में आरती का गायन कर रही अहिल्याबाई की आवाज सुनकर राजा ने उनसे बातचीत की और उनके पिता से मिलने का आग्रह किया। इसके बाद राजा मल्हार अहिल्याबाई के पिता से मिलकर अपने बेटे के लिए अहिल्याबाई का हाथ मांग लिया। कुछ समय बीतने के बाद अहिल्याबाई के पति खांडेराव का देहांत हो गया और पूरे मालवा साम्राज्य की जिम्मेदारी अहिल्याबाई के ऊपर आ गई। ससुर राजा मल्हार राव के आग्रह पर देवी अहिल्याबाई ने राजपाठ संभाला। इसके बाद देवी अहिल्याबाई रानी से महारानी बन गई। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और न्याय प्रिय शासन के तौर पर नई पहचान बनाई और महिलाओं को सशक्त बनाने का बीड़ा उठाया।
महिलाओं को रोजगार से जोड़ा
महारानी देवी अहिल्याबाई ने महिलाओं को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए स्व सहायता समूह के माध्यम से पहले महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाया और फिर रोजगार उपलब्ध कराया। महिलाओं को रोजगार के लिए उन्होंने साड़ी उद्योग लगाया जिसमें महिलाओं को काफी संख्या में रोजगार उपलब्ध हुआ। इसके अलावा उन्होंने महिला सेना का भी निर्माण किया जिसमें महिलाओं को शास्त्र के साथ शास्त्रों का भी उपयोग करना सिखाया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारतीय जनता पार्टी के जिला अध्यक्ष आशुतोष अग्रवाल ने कहा कि लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर ने 300 वर्ष पूर्व मालवा में राज किया और लगभग 30 वर्ष तक उनका साम्राज्य चलता रहा।