माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य 1530 के आसपास शुरू हुआ और 20वीं शती में बीकानेर के राजा गंगा सिंह ने इसे राजपूत शैली में पूरा कराया। करणी मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर की नक्काशी बेहद आकर्षक है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं।
करणी माता मंदिर बीकानेरः 20 हजार चूहों का निवास
करणी माता मंदिर को चूहों के मंदिर के रूप में भी जाना जाता है। मान्यता है कि यहां करणी माता, उनके परिवार के लोग और अनुयायी चूहों (काबा) के रूप में निवास करते हैं। इसलिए इस मंदिर में करीब 20 हजार चूहों का निवास है और यहां करणी माता के साथ चूहों की पूजा की जाती है। इसमें सबसे खास हैं सफेद चूहे, जिन्हें देखना अत्यंत पुण्यफलदायक माना जाता है।मान्यता है कि ये सफेद चूहे करणी माता और उनके 4 भतीजे हैं, जिन्होंने चूहों के रूप में पुनर्जन्म लिया है। इस मंदिर में इतने चूहे हैं और उन्हें कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए पैर घसीटकर मां की मूर्ति के सामने तक चलना पड़ता है। बिल्ली, चील, गिद्ध आदि शिकारियों से चूहों को नुकसान न पहुंचे इसके लिए मंदिर परिसर में जाली लगाई गई है।

दंतकथा 1: मां जगदंबा की अवतार
स्थानीय लोगों का मानना है कि करणी देवी मां जगदंबा की अवतार थीं, और आज जहां मंदिर हैं सैकड़ों साल पहले वहीं रहकर एक गुफा में अपने इष्ट की पूजा करती थीं। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में है। मान्यता है कि माता के ज्योर्तिलीन होने पर उनकी इच्छानुसार मूर्ति की गुफा में स्थापना की गई। यह भी मान्यता है कि मां करणी के आशीर्वाद से ही बीकानेर और जोधपुर राज्य की स्थापना हुई थी।दंतकथा 2: डाकू का किया अंत
एक अन्य दंतकथा के अनुसार करणी मां साधारण ग्रामीण कन्या थीं, लेकिन कई चमत्कार उनके जीवन से जुड़े हुए हैं। इनका अवतरण चारण कुल में वि. सं. 1444 यानी (20 सितंबर 1387) को अश्विनी शुक्ल सप्तमी शुक्रवार को जोधपुर में मेहाजी किनिया के घर हुआ था। करणीजी ने जनहित के लिए तत्कालीन जांगल प्रदेश को अपनी कार्यस्थली बनाया और राव बीका को राज्य स्थापित करने का आशीर्वाद दिया। बाद में करणी माता ने पूगल के राव शेखा को मुल्तान (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) के कारागृह से मुक्त कराकर उसकी पुत्री रंगकंवर का विवाह राव बीका से कराया।मान्यता है कि करणी माता ने मानवों और पशु-पक्षियों के लिए देशनोक में दस हजार बीघा ओरण (पशुओं की चराई का स्थान) की स्थापना भी की थी। करणीजी की गायों का चरवाहा दशरथ मेघवाल था। एक बार डाकू पेंथड़ और पूजा महला से गायों की रक्षा करते समय मेघवाल की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने डाकू पेंथड़ और पूजा महला का अंत कर दिया।
दंतकथा 3: चूहे मां करणी के परिवार के लोग (Karni Mata Temple Katha)
एक अन्य दंत कथा के अनुसार करणी माता शक्ति का अवतार थीं और ब्रह्मचारी रहीं। उन्होंने अपने पति देपाजी के वंश को आगे बढ़ाने के लिए छोटी बहन का विवाह उनसे करा दिया। करणी जी इनके बच्चों की देखभाल करती थीं। एक बार देपाजी के चार बेटों में से सबसे छोटा लक्ष्मण नहाते समय कोलायत के पास कपिल सरोवर में डूब गया। उनकी छोटी बहन ने करणी माता से लक्ष्मण को वापस जीवित करने की प्रार्थना की।फिर करणी माता ने काबा (चूहा) का सजीव रूप चुना, ताकि जब उसके वंश के मानव मरें तो वे काबा के रूप में पुनर्जन्म लें और मंदिर के भीतर उनके पास रहें, और जब काबा मरें तो वे फिर से मानव चरण के रूप में पुनर्जन्म लें।
