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श्री गंगानगर

फादर्स डे: संँघर्ष का लंबा दौर और पिता का सपना

– श्रीगंगानगर जिले के कई गुमनाम शख्स जिनकी मेहनत लाई रंग

श्री गंगानगरJun 15, 2025 / 12:58 pm

surender ojha

श्रीगंगानगर। पिता सिर्फ रिश्ता नहीं, एक एहसास है, जो लहजे में छिपा रहता है। असीम प्यार और हर मोड़ पर साथ निभाने वाला मज़बूत कंधा भी है। पिता संतान के सर्वांगीण विकास में प्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक भूमिका निभाते हैं। पिता की प्रेरणा ही किसी सपने को आकार देती है। यह कहानी एक ऐसे ही पिता की है, जिन्होंने अपने अधूरे सपने को अपने बेटों की आँखों में पूरा होते देखा।

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अ​धिवक्ता के रूप में पिता-पुत्र की जोड़ी 

सादुलशहर बार संघ के पूर्व अध्यक्ष अधिवक्ता धर्मेन्द्र शर्मा फौजदारी मामलों मेंं पैरवी करने और कानूनी पहलूओं के पुराने जानकार है। शर्मा ने सादुलशहर और श्रीगंगानगर में अधिवक्ता के साथ साथ प्रखर वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। शर्मा को देखकर उनके बेटे नवीन शर्मा ने अपना कैरियर वकालत में अपनाने का संकल्प लिया और अपनी अलग पहचान बनाने के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर में प्रेक्टिस शुरू की। इस पिता पुत्र की जोडी ने कई प्रकरणों में अच्छे कानूनी पहलूओं को अदालतों में रखे जिससे संबंधित पक्षकारों को फायदा भी पहुंचा।
भजन गायकी में पिता से दो कदम आगे निकला बेटा

श्रीगंगानगर की इंदिरा कॉलोनी की गली नम्बर 12 में रहने वाले भजन गायक रवि चुघ पिछले चालीस साल से धार्मिक स्थलों और घरों पर भजन मंडली में भजनों के माध्यम से अपनी पहचान बनाई। जागरण में अपने पिता को बचपन में भजन गाते देखा तो बेटे लविश चुघ में संगीत के प्रति ललक जाग उठी। बनारस के डॉ. राम गोपाल त्रिपाठी को गुरु बनाया और उनके सान्निध्य में शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पूरी कर लविश ने संगीत में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा भी सम्पूर्ण की। वह अब संगीत में यूजीसी नेट चयनित हो चुका है। जागरण के अलावा दा मेलोडी मेकर्स नाम से लाइव म्यूजिकल बैंड, बॉलीवुड सॉन्ग सूफी नाइट में लविश चुघ की आवाज सिर चढ़कर बोल रही है। उसने अपने पिता रवि से दो कदम आगे बढकर अपनी पहचान बनाई है।
खुद नहीं बना तो अपने बेटे को बनाया न्यायिक अफसर

ज़िले कि सूरतगढ़ तहसील के गांव घमंडिया चक 1 जी.एम.डी. (ढाणी) में निवासी अधिवक्ता बनवारीलाल कड़ेला कभी स्वयं न्यायिक अधिकारी बनने का सपना देखा था। उन्होंने राजस्थान न्यायिक सेवा परीक्षा और राजस्थान उच्च न्यायिक सेवा की तैयारी भी की, पर जीवन की जिम्मेदारियों ने उन्हें वकालत तक सीमित रखा। लेकिन उनके भीतर का सपना बुझा नहीं। वह उनके हृदय में धधकता रहा। अपने जीवन के अनुभवों और न्यायप्रिय सोच के साथ, उन्होंने अपने दोनों पुत्रों अंकित कड़ेला और जतिन कड़ेला को न केवल पढ़ाई में उनका मार्गदर्शन किया, बल्कि उन्हें यह सिखाया कि कानून का कार्य सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि समाज सेवा का एक माध्यम है। बारहवीं कक्षा के बाद जब करियर चुनने का समय आया, तो पिता के प्रेरणादायक शब्दों और आशीर्वाद से दोनों बेटों ने विधि को अपनाया। दिन-रात की मेहनत और पिता की छाया व मार्गदर्शन के साथ वर्ष 2024 की आरजेएस परीक्षा उनके जीवन का निर्णायक मोड़ बन गई। बड़े बेटे अंकित कड़ेलाआरजेएस की मुख्य परीक्षा तक पहुँचे लेकिन छोटे बेटे जतिन कड़ेला ने इतिहास रच दिया। जतिन अपने पहले ही प्रयास में आरजेएस परीक्षा उत्तीर्ण करके देश के सबसे कम उम्र के न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त किया।

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