हालांकि कुछ चिली की प्रजातियों से आलू की शक्ल मिलती है, लेकिन आनुवंशिक रूप से यह टमाटर से कहीं ज़्यादा मेल खाता है। वैज्ञानिकों ने 450 पालतू किस्मों और 56 जंगली आलू प्रजातियों का डीएनए अध्ययन किया और पाया कि सभी आलुओं में टमाटर जैसे और Etuberosum दोनों पूर्वजों की जीन मौजूद हैं।
इस खोज में दो खास जीन की भूमिका सामने आई:
IT1 — जो Etuberosum से आया, यह ज़मीन के नीचे की गांठों की वृद्धि को नियंत्रित करता है। इन दोनों के बिना आज का आलू अस्तित्व में नहीं होता।
उस समय एंडीज़ पहाड़ उभर रहे थे और वहां का वातावरण बेहद सर्द और शुष्क हो गया था। मिट्टी के नीचे गांठ बनाकर आलू जैसे पौधों को ठंड, सूखा और ऑक्सीजन की कमी में भी जीने का मौका मिला। साथ ही, गांठों के ज़रिए बिना बीज के नए पौधे बन सकते हैं — यानि क्लोनिंग जैसे गुण।
इस हाइब्रिड पौधे में सिर्फ जीन नहीं बदले, बल्कि पौधों के हार्मोन सिस्टम में भी बदलाव हुआ। यह पौधा फूल और बीज बनाने की बजाय पोषण संग्रहीत करने में माहिर बन गया। इसमें वे जीन कमज़ोर पड़े जो फूल बनाते हैं और वे ज़्यादा सक्रिय हुए जो ट्यूबर बनाते हैं।
इस रिसर्च ने यह भी दिखाया कि दूर-दराज की प्रजातियों के बीच हाइब्रिडाइज़ेशन दुर्लभ होते हुए भी बेहद असरदार होता है। इससे नई प्रजातियां बनती हैं और विशेष गुण सामने आते हैं। आलू इसका जीवंत उदाहरण है — एक ऐसा पौधा जो बिना बीज के बढ़ सकता है, कठोर परिस्थितियों में जी सकता है, और हर प्रकार की जलवायु में ढल सकता है।
आज आलू दुनिया की सबसे जरूरी फसलों में से एक है। लेकिन यह सब शुरू हुआ एक प्राचीन मेल से — टमाटर जैसे पौधे और Etuberosum के बीच के रिश्ते से। इस बॉटनिकल रिश्ते ने न केवल एक नई फसल को जन्म दिया, बल्कि इंसानी खानपान को भी हमेशा के लिए बदल दिया।