script21 किमी परि धि की विरासत, जंग खाने लगी राजसमंद झील, वंदे गंगा अभियान के शोर में डूबती एक अमूल्य धरोहर | The 21 km long heritage, Rajsamand lake is rusting, a priceless heritage drowning in the noise of Vande Ganga Abhiyan | Patrika News
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21 किमी परि धि की विरासत, जंग खाने लगी राजसमंद झील, वंदे गंगा अभियान के शोर में डूबती एक अमूल्य धरोहर

राजस्थान सरकार के निर्देशों पर पूरे प्रदेश में वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान जोरों पर है। अधिकारी फोटो खिंचवा रहे हैं, मंत्री उद्घाटन कर रहे हैं, और कागज़ी कामों की फाइलें मोटी होती जा रही हैं।

राजसमंदJun 25, 2025 / 12:42 pm

Madhusudan Sharma

rajsamandm jheel

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राजसमंद. राजस्थान सरकार के निर्देशों पर पूरे प्रदेश में वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान जोरों पर है। अधिकारी फोटो खिंचवा रहे हैं, मंत्री उद्घाटन कर रहे हैं, और कागज़ी कामों की फाइलें मोटी होती जा रही हैं। लेकिन जब जमीनी हकीकत पर नज़र डाली जाए तो तस्वीर बिल्कुल अलग नजर आती है और इसका उदाहरण है राजसमंद झील। राजसमंद झील, जिसे मेवाड़ की जीवनरेखा कहा जाता है, आज प्रशासनिक अनदेखी और राजनीतिक दिखावे के बीच अपनी आभा को बचाने का रास्ता खोज रही है। 21 किलोमीटर परि​धि और 45 फीट गहरी इस झील को कभी स्थापत्य और जल प्रबंधन का अद्भुत उदाहरण माना जाता था। आज इसकी पालें जंग खा रही हैं और किनारों पर गंदगी का अंबार है। इसकी दिवारों को चूहे खोखला करने में लगे हैं। लेकिन कोई भी इसकी चमक को बरकरार रखने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। चूंकि सरकार ने अब वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान का आगाज किया है। लेकिन इतना बड़ा कार्यक्रम करने के बावजूद इस झील को भूल गए। जबकि इसकी भी देखभाल की खासी जरूरत है।

वंदे गंगा अभियान: प्रचार ज्यादा, प्रभाव कम?

वंदे गंगा जल संरक्षण अभियान की शुरुआत जब उप मुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा ने इरिगेशन पाल से की थी, तो उम्मीद बंधी थी कि झीलों और नदियों के पुनर्जीवन की दिशा में ठोस कदम उठेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा खुद राजसमंद आए, उन्होंने नौ चौकी पाल पर झील पूजन किया, लेकिन अफसोस कि यह दौरा भी ‘औपचारिकता’ से आगे नहीं बढ़ पाया। झील के किनारे पसरी गंदगी, पानी में फैली काई और क्षतिग्रस्त पालें इस अभियान की असल सच्चाई बयान कर रही हैं।

झील के हालात: क्या यही है जल संरक्षण?

राजसमंद शहर की प्यास बुझाने वाली यह झील केवल पेयजल का स्रोत नहीं है, बल्कि किसानों के लिए यह सिंचाई का भी प्रमुख साधन है। इसके बावजूद झील की मौजूदा हालत बेहद चिंताजनक है:
  • झील के चारों ओर फैली प्लास्टिक, पॉलीथीन और कचरे की परतें
  • पानी की सतह पर गंदगी और जलकुंभी का राज
  • पालों पर जंग और दरारें, जो भविष्य में किसी भी आपदा को जन्म दे सकती हैं
  • स्थानीय मत्स्य व्यापारियों और नाविकों की आजीविका पर संकट
  • झील किनारों पर कपड़े धोते लोगों पर कोई प्रतिबंध तक नहीं है।

जनप्रतिनिधियों की चुप्पी: जिम्मेदारी या उदासीनता?

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जनप्रतिनिधि और अधिकारी इस विषय पर मौन साधे बैठे हैं। जहां जल जीवन मिशन, अमृत योजना और अब वंदे गंगा जैसे अभियानों पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं, वहीं राजसमंद झील जैसे ऐतिहासिक जलाशयों की सुध लेना किसी की प्राथमिकता नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे सरकार के लिए झील केवल तब मायने रखती है जब कोई राजनीतिक दौरा हो, मीडिया कैमरे हों या कोई वोट बैंक की योजना बन रही हो।

स्थानीय लोगों की व्यथा: आवाजें जो नहीं पहुंचती राजधानी तक

स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता इस झील के भविष्य को लेकर बेहद चिंतित हैं। लोगों का कहना है कि हम बचपन से इस झील को साफ और निर्मल देखते आए हैं। आज इसका पानी काला साल नजर आता है। अधिकारी सिर्फ मीटिंग करते हैं, जमीन पर कोई काम नहीं होता। जब जल संरक्षण की बात आती है, तो गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक किया जाता है। लेकिन प्रशासन खुद कितनी जागरूकता दिखा रहा है, यह झील को देखकर समझा जा सकता है।

संरक्षण की संभावनाएं: चाह है तो राह है

विशेषज्ञों के अनुसार यदि वंदे गंगा अभियान को वास्तव में प्रभावी बनाना है, तो राजसमंद झील जैसे जलाशयों को प्राथमिकता देनी होगी। कुछ ठोस कदम जो तुरंत उठाए जा सकते हैं:
  • झील के चारों ओर सघन सफाई अभियान
  • नालों और सीवरेज के जल को झील में जाने से रोकना
  • पाल की मरम्मत और सुदृढ़ीकरण
  • झील के आसपास जन भागीदारी आधारित संरक्षण योजना
  • स्कूली बच्चों और स्थानीय युवाओं को जोड़कर जल प्रहरी अभियान शुरू करना

राजसमंद झील: इतिहास, संस्कृति और जीवन का संगम

यह झील केवल पानी का एक भंडार नहीं, बल्कि राजस्थान की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। महाराणा राज सिंह द्वारा 1660 के दशक में बनवाई गई यह झील मेवाड़ की स्थापत्य कला और जल नीति की मिसाल रही है।

क्या केवल अभियान से बहाल होंगे जल स्रोत?

सरकार द्वारा घोषित योजनाएं तो धरातल पर आने की दूर की बात लेकिन सरकार के अभियान भी केवल खानापूर्ति वाले साबित हो रहे हैं। अभियान में दिखावा ज्यादा, काम कम नजर आता है। लोगों का कहना है कि अभियान तभी सफल होंगे जब दृढ निश्चय के साथ इस दिशा में बड़े जलस्रोतों पर बेहतरी के साथ काम किया जाए।

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