बारिश में खेत बने खतरे, ऐप ने बढ़ाई मुश्किल
पटवार संघ के जिलाध्यक्ष रोहित पालीवाल ने बताया कि खेतों में इस वक्त पानी भरा है, चारों तरफ कीचड़ है और खरीफ की फसलें तेजी से फैल रही हैं। ऐसे में पटवारियों को खेतों के बीचों-बीच जाना पड़ता है, ताकि डीसीएस गिरदावरी ऐप में लोकेशन की सटीक एंट्री की जा सके। लेकिन खेतों के अंदर घने पानी, कीचड़, झाड़-झंखाड़ और जहरीले सांप-कीड़े पटवारियों की जान पर बन आते हैं। कहने को तो डिजिटल गिरदावरी से पारदर्शिता बढ़ी है, लेकिन ऐप की तकनीकी खामियां अब फील्ड स्टाफ पर भारी पड़ रही हैं। कई बार ऐप में लोकेशन पिन नहीं होती, तो कई बार नेटवर्क न मिलने से डाटा अपलोड नहीं हो पाता।
पुराने सर्वेयरों का बकाया, नए तैयार नहीं
मुसीबत यहीं खत्म नहीं होती। पिछले साल सर्वे में लगाए गए कई सर्वेयरों को आज तक मेहनताना नहीं मिला। नतीजा यह हुआ कि इस खरीफ गिरदावरी में नए सर्वेयर भी हाथ खड़े कर रहे हैं। ऐसे में पटवारियों पर फील्ड का अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है। ज्ञापन में रखी ये अहम मांगे
- जहां फसल नहीं है, वहां खसरा की लोकेशन लेने की अनिवार्यता खत्म की जाए।
- वर्तमान में खेत के भीतर 20 मीटर तक लोकेशन लेने की बाध्यता है, जिसे बारिश के मौसम को देखते हुए 400 मीटर तक बढ़ाया जाए। इससे पटवारियों को खेत के बीच ज्यादा अंदर नहीं जाना पड़ेगा और उनकी सुरक्षा भी बनी रहेगी।
- राजसमंद की भौगोलिक परिस्थिति और मानसून के हालातों के मद्देनजर डीसीएस गिरदावरी ऐप में जरूरी तकनीकी सुधार तत्काल किए जाएं।
एडीएम ने दिया भरोसा
अतिरिक्त जिला कलेक्टर ने प्रतिनिधिमंडल की बातें गंभीरता से सुनीं और भरोसा दिलाया कि पटवारियों की बातों को वे उच्च अधिकारियों तक पहुंचाएंगे। साथ ही ऐप की तकनीकी खामियों को दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे।
ज्ञापन देने में कौन-कौन शामिल रहे?
इस अवसर पर संघ के उपाध्यक्ष रतन लाल पायक, जिलामंत्री कालूराम कुमावत, कोषाध्यक्ष दिनेशचंद्र पालीवाल, जिला मीडिया प्रभारी अभिमन्यु सिंह भाटी, उपशाखा अध्यक्ष राजेश रैगर, भावेश खत्री, गोपाल गाडरी, लक्ष्मीलाल कुमावत, रमेश गाडरी, प्रियंका पालीवाल समेत कई पटवारी साथी मौजूद रहे।
पटवारियों ने कहा: तकनीक सही हो तो खेतों में खतरा कम हो
पटवार संघ ने दो टूक कहा कि सरकार पारदर्शिता के लिए डिजिटल गिरदावरी को जरूरी मान रही है, लेकिन फील्ड की असल चुनौतियों को भी समझना होगा। ऐप की तकनीकी दिक्कतें और भुगतान में देरी अगर ऐसे ही चलती रही, तो खरीफ गिरदावरी का काम हर साल पटवारियों की जान पर बनकर रहेगा।