जानकारी के अनुसार, विजय रेड्डी ने करीब तीन दशक पहले अपने परिवार को छोड़कर
नक्सल आंदोलन का रास्ता चुना था। उस समय रामकृष्ण महज़ दो साल का था। पिता के बिना ही उसने अपनी माँ, नानी और बड़े भाई के साथ आंध्रप्रदेश में परवरिश पाई।
रामकृष्ण ने बताया कि उसे अपने पिता की मौत पर कोई दुख नहीं है। उसने कहा कि शव लेने में किसी तरह की परेशानी नहीं हुई और पुलिस का पूरा सहयोग मिला। उसने यह भी कहा कि विजय ने कभी अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारी नहीं निभाई, बल्कि ना जाने कितने बच्चों को उनके पिता से वंचित कर दिया।
CG News: बावजूद इसके,
रामकृष्ण ने पुत्र धर्म निभाते हुए पिता का अंतिम संस्कार किया। रामकृष्ण सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुका है और वर्तमान में आउटसोर्सिंग के काम से जुड़ा है। वहीं उसका बड़ा भाई मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एमटेक करने के बाद बैंक में नौकरी कर रहा है।