CG News: एंजियोप्लास्टी के दौरान पद्मश्री की हालत बिगड़ी
सीटी एंजियोग्राफी कराने से यह पता चल जाता है कि हार्ट की कौन-कौन सी नस में ब्लॉकेज है। ये जांच नहीं होने से वे चले गए। अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब एक वीआईपी मरीज के साथ ये हो सकता है तो एक आम मरीज के साथ क्या हो सकता है?
प्रबंधन ने सीटी इंजेक्टर मशीन लगाने का प्रयास जरूर किया, लेकिन गंभीरता से नहीं। इसलिए मरीजों को निजी डायग्नोस्टिक सेंटर में 8500 से 10 हजार रुपए में जांच करानी पड़ रही है। पत्रिका की पड़ताल में पता चला है कि सप्ताहभर पहले जब पद्मश्री अपनी पत्नी के साथ एसीआई पहुंचे तो खुश थे, लेकिन जरूरी जांच नहीं होने से
डॉक्टरों को भी ये पता नहीं चल सका कि उनके हार्ट की नसों में कहां-कहां ब्लॉकेज है।
15 लाख खर्च, लेकिन उदासीनता
सीटी स्कैन की सहायक इंजेक्टर मशीन कंडम हो गई है। संबंधित सप्लायर कंपनी ने बिगड़े पार्ट्स देने से हाथ खड़ा कर दिए हैं। नई मशीन 15 लाख रुपए की है। नेहरू मेडिकल कॉलेज व
आंबेडकर अस्पताल के बैंक खाते में करोड़ों रुपए जमा है। इसके बाद भी नई मशीन खरीदने का प्रयास नहीं किया गया। पिछले साल प्रबंधन ने कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसआर) के तहत दो-तीन कंपनियों से बातचीत की थी ताकि मशीन आ जाए और मरीजों की जांच प्रभावित न हो।
यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 128 स्लाइस सीटी स्कैन मशीन 2012 में लगाई गई थी। इसी के साथ सहायक मशीन के रूप में इंजेक्शन मशीन भी लगाई गई थी। यह मशीन कंट्रास्ट नामक केमिकल डालने के लिए काम आती है, जो कार्डियक या सीटी एंजियोग्राफी में मददगार है। कार्डियोलॉजी, कार्डियक सर्जरी व मेडिसिन विभाग के डॉक्टर कार्डियक एंजियोग्राफी कराने के लिए मरीजों को सलाह देते हैं।
वीआईपी मरीज का ये हाल तो आम मरीज का क्या होगा
डॉ. सुरेंद्र दुबे 24 जून की रात दोबारा एसीआई पहुंचे। तब उन्हें घर में बैचेनी, सीने में दर्द हो रहा था। रात में ही भर्ती कर इलाज शुरू कर दिया गया। 25 जून की सुबह 9 बजे के आसपास एंजियोप्लास्टी की गई। दो नसों में ब्लॉकेज था। पत्रिका के विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि एंजियोप्लास्टी के दौरान पद्मश्री की हालत बिगड़ती गई इसलिए उन्हें एक ही स्टेंट लगाया गया। उनके स्टेबल होने के बाद दूसरा स्टेंट लगाने का निर्णय लिया गया। 15 से 20 दिनों में यह दूसरा स्टेंट लगा दिया जाता। हालांकि अस्पताल प्रबंधन ने दो स्टेंट लगाने का दावा किया है। पद्मश्री को 26 जून को सुबह कार्डियक अरेस्ट आया। सीपीआर देने के बाद वे ठीक हुए। दोपहर में फिर से दो बार कार्डियक अरेस्ट आया, तब डॉक्टर उनकी प्राण नहीं बचा पाए। एंजियोप्लास्टी के बाद हालत खराब होने के कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। स्टाफ के अनुसार जब वे भर्ती के लिए आए, तब उनकी पत्नी व बाकी रिश्तेदारों को उम्मीद थी कि मरीज ठीक हो जाएंगे और स्वस्थ होकर घर पहुंचेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
अधीक्षक-डीन को पता नहीं कि चल रहा इलाज
अस्पताल में वीआईपी व पद्मश्री अवार्डी मरीज का इलाज चल रहा है, इसकी जानकारी न अस्पताल अधीक्षक को थी, न ही मेडिकल कॉलेज के डीन को। जब गुरुवार को मरीज की मौत हुई, तब इसका पता चला। इस पर अधीक्षक व डीन ने आपत्ति भी जताई है कि कार्डियोलॉजी विभाग ने वीआईपी मरीज के इलाज की जानकारी बिल्कुल नहीं दी। अधीक्षक आंबेडकर
अस्पताल में डॉ. संतोष सोनकर ने कहा की सीटी एंजियोग्राफी के लिए सीटी इंजेक्टर मशीन खरीदने सीजीएमएससी को प्रस्ताव भेजा गया है। लगने में समय लगेगा। सप्ताहभर पहले पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे इलाज कराने आए थे, इसकी जानकारी नहीं है। गुरुवार को सुबह से दोपहर तक तीन बार कार्डियक अरेस्ट आया। डॉक्टरों ने काफी प्रयास किया, लेकिन जान नहीं बचा सके।