बड़ा सवाल ये है कि तत्कालीन हैल्थ डायरेक्टर व सीजीएमएससी के एमडी के खिलाफ अब तक क्यों कार्रवाई नहीं की जा रही है? इतने बड़े घोटाले में बिना हैल्थ डायरेक्टर व
सीजीएमएससी के एमडी के परमिशन के बिना खरीदी नहीं हो सकती। हालांकि ईडी इन अधिकारियों से पूछताछ कर रही हैै। इस मामले में मोक्षित कॉर्पोरेशन के डायरेक्टर शशांक चोपड़ा समेत दवा कॉर्पोरेशन के 6 अधिकारी जेल में हैं। आईएएस अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होने से चर्चा चल पड़ी है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी।
दस्तावेजों में कूटरचना कर स्वयं को मैनुफैक्चरर बताता था: सीजीएमएससी का बड़ा वेंडर रहा मोक्षित कॉर्पोरेशन दस्तावेजों में कूटरचना कर स्वयं को मेडिकल इक्विपमेंट का ओरिजनल मैनुफैक्चरर बताता था। इसी आधार पर उन्हें करोड़ों के मेडिकल इक्विपमेंट सप्लाई का ऑर्डर भी मिलता था। सीजीएमएससी के टेंडर में भी इस बात का जिक्र होता था कि ओरिजनल मैनुफैक्चरर ही टेंडर भरें। ऐसा नहीं होने के बावजूद सप्लाई का ठेका मोक्षित कॉर्पोरेशन को मिलता था।
इसमें आला अधिकारियों की मिलीभगत भी सामने आई है। अंधेरगर्दी का आलम ये था कि कूटरचित दस्तावेज होने की जानकारी होने के बाद भी टेंडर मोक्षित कॉर्पोरशन को मिलता था। वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के एक आर्डर के अनुसार मेडिकल इक्विपमेंट ओरिजनल इक्विपमेंट मैनुफैक्चरर से खरीदने का आदेश था। यहीं नहीं, इसी विभाग के 3 जुलाई 2013 के आदेश के अनुसार शासकीय खरीदी में मूल निर्माता से सामानों की खरीदी की जाए।
मोक्षित कॉर्पोरेशन व सीजीएमएससी के अधिकारियों की अनियमितता की शिकायत तीन साल पुरानी है। पत्रिका के पास वे दस्तावेज उपलब्ध है, जिसमें सीएम से लेकर स्वास्थ्य मंत्री, स्वास्थ्य सचिव, नेता प्रतिपक्ष को 2022 में शिकायत की गई थी, लेकिन कार्रवाई कुछ भी नहीं हुई। 660 करोड़ के रीएजेंट व मेडिकल इक्विपमेंट घोटाला सामने आने के बाद मोक्षित के खिलाफ विधानसभा में मामला उठा, तब स्वास्थ्य मंत्री ने मामले को ईओडब्ल्यू को सौंपने की घोषणा की थी। जनवरी में एसीबी व ईओडब्ल्यू ने मोक्षित कॉर्पोरेशन के दुर्ग स्थित कार्यालय में छापा मारा और डायरेक्टर शशांक चोपड़ा को हिरासत में लिया था। अभी वह जेल में बंद है।