लोकभाषा और आदिवासी परंपरा से निकला ‘गोदना’, छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान का बना प्रतीक
CG tattoo culture: छत्तीसगढ़ में ‘गोदना’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘गुदना’ से मानी जाती है। यह आदिवासी समुदायों की परंपरा, धार्मिक विश्वास और सांस्कृतिक पहचान से गहराई से जुड़ा हुआ है, जो आज भी जीवित परंपरा के रूप में समाज में स्थापित है।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी परंपरा से जुड़ा गोदना (Photo source- Patrika)
CG tattoo culture: छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत में “गोदना” (Tattoo) केवल एक कला नहीं, बल्कि सामाजिक, आध्यात्मिक और पारंपरिक पहचान का प्रतीक रहा है। यह आदिवासी समाज से लेकर ग्रामीण अंचलों तक शरीर पर अंकित स्मृति, आस्था और सौंदर्यबोध की गहरी छाप छोड़ता आया है। आज भी गोदना न केवल एक सांस्कृतिक प्रतीक है, बल्कि आधुनिक समय में टैटू आर्ट के रूप में नवजीवन पा चुका है।
आदिवासी जीवन में गोदना— छत्तीसगढ़ के गोंड, बैगा, मुरिया, हल्बा, कोरवा, कमार जैसे जनजातीय समुदायों में गोदना एक अनिवार्य परंपरा रही है। इसे शरीर पर जीवनभर की पहचान, आत्म-सुरक्षा, सौंदर्य और सामाजिक स्थिति से जोड़कर देखा जाता था।
आध्यात्मिक मान्यता— गोदने के पीछे यह मान्यता रही कि मृत्यु के बाद शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु गोदना आत्मा के साथ जाता है और परमात्मा की पहचान में सहायक होता है। खासकर महिलाओं में धार्मिक चिन्ह, देवी-देवताओं के प्रतीक और पारिवारिक पहचान अंकित किए जाते थे।
शरीर के विशिष्ट अंगों पर गोदना— आमतौर पर महिलाओं के हाथ, गर्दन, माथे, छाती, और पैरों पर गोदना किया जाता था, जबकि पुरुषों में भुजाओं या छाती पर जातीय प्रतीक, योद्धा चिन्ह या अन्य पौरुष दर्शाने वाले चित्र बनाए जाते थे।
गोदना का अर्थ
गोदना शब्द का शाब्दिक अर्थ चुभाना है, या फिर सतह को बार-बार छेदना। शरीर में सुई चुभोकर उसमें काले या नीले रंग का लेप लगाकर गोदना कलाकृति बनाई जाती है जिसे गोदना और इसे अंग्रेजी में टैटू कहा जाता है इस कला को गोदना कला भी कहा जाता है।
गोदने की प्रथा पूरे छत्तीसगढ़ में व्यापक रूप से प्रचलित है। यह शरीर कला का एक रूप है जो ज्यादातर महिलाओं द्वारा महिलाओं पर किया जाता है, मुख्य रूप से इस क्षेत्र के आदिवासी और ‘निम्न’ जाति समुदायों के बीच। इस अभ्यास के लिए प्रयुक्त शब्द गोदना है, जिसका अर्थ सुई से शरीर को छेदना है।
CG tattoo culture: कला के रूप और डिज़ाइन
प्राकृतिक उपकरणों से गोदना— पारंपरिक गोदना नीम की कांटी, बबूल की सुई और लकड़ी की स्याही (काजल मिश्रित तेल) से किया जाता था। इससे बने डिज़ाइन स्थायी और गहरे होते हैं।
लोक डिज़ाइन— गोदने में उपयोग होने वाले पारंपरिक डिज़ाइन जैसे – बेल-बूटे, मोर, फूल, चिड़िया, सूरज, चंद्रमा, देवी-देवता, कछुआ, सांप, व रेखांकित ज्यामितीय आकृतियाँ आम हैं।
इन स्थानों में है गोदना का ट्रेंड
छत्तीसगढ़ में गोदना (Tattoo) का ट्रेंड सबसे अधिक आदिवासी बहुल अंचलों में देखा जाता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ पारंपरिक जनजातीय संस्कृति अब भी जीवंत है। नीचे कुछ प्रमुख क्षेत्रों का उल्लेख किया गया है—
बस्तर संभाग (जगदलपुर, कोंडागांव, नारायणपुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर)— यहाँ गोंड, मुरिया, हलबा, और मारिया जैसे जनजातीय समुदाय रहते हैं, जिनमें गोदना एक गहरी सांस्कृतिक परंपरा है। महिलाओं के हाथ, पैर, और गर्दन पर पारंपरिक डिजाइन वाले गोदने आम हैं।
बस्तर दशहरा जैसे पर्वों में पारंपरिक वेशभूषा के साथ गोदना संस्कृति विशेष रूप से दिखाई देती है। सरगुजा संभाग (सरगुजा, बलरामपुर, जशपुर, कोरिया)— यहाँ उरांव, कोरवा, पांडो और अन्य जनजातियों में गोदना की विशेष मान्यता है।
विशेष रूप से विवाह के पहले युवतियों को पारंपरिक गोदने कराए जाते हैं। रायगढ़ और जांजगीर-चांपा क्षेत्र— यहाँ भी कुछ जनजातीय व पिछड़े वर्गों में पारंपरिक गोदना संस्कृति देखी जाती है, हालांकि आधुनिकता का असर तेजी से हो रहा है।
CG tattoo culture: आधुनिक ट्रेंड: रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई— ये शहरी क्षेत्र हैं जहाँ टैटू का फैशन और धार्मिक आस्था के रूप में उभरता ट्रेंड दिख रहा है। युवा पीढ़ी में “ॐ”, “त्रिशूल”, “शिव-पार्वती”, और मोटिवेशनल टैटू जैसे डिजाइनों की मांग तेज़ी से बढ़ी है।
रायपुर में कई टैटू स्टूडियो अब पारंपरिक गोदना डिजाइनों को आधुनिक टैटू में बदलकर प्रस्तुत कर रहे हैं।
Hindi News / Raipur / लोकभाषा और आदिवासी परंपरा से निकला ‘गोदना’, छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान का बना प्रतीक