कभी चलता था राज, अब बंद हैं सारे दरवाज़े वो दौर बीत चुका है जब अतीक अहमद की जेलों में तूती बोलती थी। नैनी और देवरिया जेलों में दरबार सजते थे, बकरे कटते थे और बैडमिंटन कोर्ट तक बना दिया गया था। लेकिन अब ऑपरेशन अतीक के बाद तस्वीर बदल चुकी है। अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या हो चुकी है। उमेश पाल हत्याकांड में आरोपी अली अहमद को अब जेल की चारदीवारी के भीतर तन्हाई और पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है।
सिगरेट की सप्लाई घटकर एक पैकेट, नाश्ता पूरी तरह बंद पहले अली को जेल में दो पैकेट सिगरेट आसानी से मिल जाया करते थे, लेकिन अब यह संख्या घटाकर एक कर दी गई है। इससे वह बेचैनी में इधर-उधर भटकता है। वहीं जेल कैंटीन से महंगी बेकरी के नाश्ते का दौर भी बंद कर दिया गया है। एक समय अली कैंटीन से बिस्किट, टोस्ट और अन्य महंगे सामान मंगवाया करता था, जिसका बिल डेढ़ से दो लाख रुपये महीना तक पहुंचता था। अब जेल के नियमों के तहत उसे साधारण भोजन—दाल और रोटी—दिया जा रहा है।
कैश बरामदगी के बाद बढ़ीं पाबंदियां सूत्रों के मुताबिक, जेल में अली के पास से कैश मिलने के बाद जेल प्रशासन हरकत में आया और उसकी विशेष सुविधाएं पूरी तरह से बंद कर दी गईं। यहां तक कि अब उसे जेल अस्पताल भी नहीं ले जाया जाता, क्योंकि वहां से वह संदेशों का आदान-प्रदान करता था। अब डॉक्टर उसकी बैरक में ही आकर चेकअप करते हैं।
70 हजार का बकाया, मुलाकातें भी बंद जेल कैंटीन के बही-खाते में अभी भी अली के नाम पर करीब 70 हजार रुपये बकाया हैं। वहीं जेल प्रशासन ने उसकी सभी मुलाकातों पर रोक लगा दी है। अब अली सिर्फ अपने वकील से मिल सकता है। बीते तीन सालों से उसे किसी परिवारजन से भी मिलने नहीं दिया गया है।
“दम घुटता है” कहकर छोड़ने की फरियाद डीआईजी जेल से लेकर सुपरिटेंडेंट तक जब भी अली की बैरक में पहुंचे, वह लगातार यही गुहार लगाता रहा कि उसे हाई सिक्योरिटी सेल से बाहर निकाला जाए। वह बार-बार कहता है कि तन्हाई बैरक में उसका दम घुटता है, लेकिन जेल प्रशासन ने उसकी मांग को नजरअंदाज करते हुए सख्त सुरक्षा के तहत वहीं रखने का फैसला बरकरार रखा है।
जेल अधीक्षक की पुष्टि नैनी सेंट्रल जेल के वरिष्ठ अधीक्षक विजय विक्रम सिंह ने कहा: “अली को हाई सिक्योरिटी सेल में 24 घंटे निगरानी में रखा गया है। कैंटीन से उसका खाना-नाश्ता बंद कर दिया गया है और सिगरेट भी सीमित कर दी गई है। अब उसे आम कैदियों की तरह जेल का भोजन ही दिया जा रहा है।”
कभी जेलों में दबदबा रखने वाला माफिया परिवार अब अपनी ही बनाई सल्तनत के अंदर घुटन महसूस कर रहा है। अली अहमद की बदलती हालत उस कहावत को सही ठहराती है—जैसी करनी, वैसी भरनी।