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पश्चिमी राजस्थान में खेजड़ी को लेकर क्या है विवाद? निजी कंपनियों की लूट या सरकार की अनदेखी? जानें पूरी कहानी

Rajasthan News: पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में इन दिनों खेजड़ी के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को लेकर जनाक्रोश चरम पर है। खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है।

जयपुरAug 07, 2025 / 06:25 pm

Nirmal Pareek

Khejri trees controversy in Rajasthan

(राजस्थान पत्रिका फोटो)

Rajasthan News: पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में इन दिनों खेजड़ी के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई को लेकर जनाक्रोश चरम पर है। खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है और इसकी सांस्कृतिक, पर्यावरणीय, और आर्थिक महत्व है, सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के नाम पर बलि चढ़ रहा है। बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर, और फलौदी जैसे सीमावर्ती जिलों में निजी कंपनियों द्वारा बड़े पैमाने पर खेजड़ी के पेड़ काटे जा रहे हैं, जिसके खिलाफ स्थानीय लोग और पर्यावरणविद आंदोलनरत हैं।
सरकार पर नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के नाम पर पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी करने का आरोप लग रहा है। इस विवाद में निजी कंपनियों की भूमिका, सरकार की नीतियां सवालों के घेरे में हैं।

खेजड़ी है राजस्थान की पहचान

दरअसल, खेजड़ी राजस्थान का राज्य वृक्ष है, जिसे 31 अक्टूबर, 1983 को यह दर्जा दिया गया। यह पेड़ न केवल रेगिस्तान की कठोर जलवायु में जीवित रहता है, बल्कि स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और लोगों की आजीविका का आधार भी है। खेजड़ी की पत्तियां पशुओं के लिए चारा प्रदान करती हैं, इसकी फलियां (सांगरी) राजस्थान की प्रसिद्ध सब्जी है, जिन्हें बेचकर किसान अपनी आजीविका चलाते हैं।
यह पेड़ मिट्टी को उपजाऊ बनाने, रेगिस्तान के विस्तार को रोकने, और जैव-विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके बावजूद, सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए खेजड़ी के पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई हो रही है।

सौर ऊर्जा के नाम पर पर्यावरण का नुकसान

जानकारी के मुताबिक राजस्थान सरकार की नवीकरणीय ऊर्जा नीति के तहत 2030 तक 90,000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 65,000 मेगावाट है। अभी तक 26,452 मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन हो चुका है, लेकिन इसके लिए भारी पर्यावरणीय कीमत चुकानी पड़ रही है।
एक अनुमान के अनुसार, पिछले 15 वर्षों में जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, और बीकानेर जिलों में सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए 27 लाख से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं, जिनमें 60% खेजड़ी के पेड़ हैं। इसके अलावा, 40 लाख से अधिक झाड़ियां भी नष्ट की गई हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि अगले पांच वर्षों में 90,000 मेगावाट के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 3 लाख बीघा अतिरिक्त जमीन की आवश्यकता होगी, जिसके लिए 45-50 लाख और पेड़ काटे जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान में पेड़ों की कटाई से 1,800 अरब रुपये से अधिक का आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान हो चुका है। यह नुकसान केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक भी है, क्योंकि खेजड़ी राजस्थान की परंपराओं और बिश्नोई समुदाय की आस्था का प्रतीक है।

यहां देखें वीडियो-


निजी कंपनियों की क्या है भूमिका?

पश्चिमी राजस्थान में सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है। अडानी ग्रीन एनर्जी, रिन्यू पावर और रिलायंस जैसी निजी कंपनियां इन परियोजनाओं में सक्रिय हैं। फलोदी, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जैसे क्षेत्रों में सौर संयंत्रों के लिए हजारों एकड़ जमीन पर खेजड़ी के पेड़ काटे गए हैं।
कंपनियां दावा करती हैं कि सौर पैनलों की स्थापना के लिए पेड़ों को हटाना आवश्यक है, क्योंकि ये पेड़ सौर पैनलों पर छाया डालते हैं, जिससे ऊर्जा उत्पादन प्रभावित होता है। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि इन कंपनियों ने कई बार पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन किया है और बिना अनुमति के पेड़ काटे हैं।
उदाहरण के लिए, बीकानेर में एक सौर परियोजना के लिए हजारों खेजड़ी पेड़ काटे गए, जिसके खिलाफ बिश्नोई समुदाय और स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए। इन कंपनियों पर आरोप है कि वे पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) की प्रक्रिया को कमजोर कर रही हैं और स्थानीय समुदायों की आपत्तियों को नजरअंदाज कर रही हैं।

सरकार की अनदेखी और नीतिगत खामिया?

राजस्थान सरकार पर आरोप है कि वह नवीकरणीय ऊर्जा के नाम पर निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी कर रही है। वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत गैर-वन भूमि पर पेड़ों की कटाई के लिए अनुमति आवश्यक है, लेकिन कई मामलों में ये अनुमतियां जल्दबाजी में या बिना उचित जांच के दी जा रही हैं। पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रक्रिया को कमजोर करने के भी आरोप लगे हैं। 2023-24 में कुछ क्षेत्रों में खेजड़ी पेड़ों की कटाई के लिए निजी कंपनियों को अनुमति दी गई, जिसके बाद विरोध प्रदर्शन तेज हुए हैं।
उद्योग मंत्री केके विश्नोई ने हाल ही में कहा कि वन विभाग को निर्देश दिए जाएँगे कि जहां कंपनियां काम कर रही हैं, वहाँ खेजड़ी के पौधे लगाए जाएँ। उन्होंने यह भी कहा कि एक खेजड़ी के बदले कितने पौधे लगाए जाएं, इसका प्रावधान किया जाएगा। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि नए पौधे लगाने से खेजड़ी जैसे परिपक्व पेड़ों की भरपाई नहीं हो सकती, जो दशकों से पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में योगदान दे रहे हैं।

खेजड़ली नरसंहार- एक ऐतिहासिक बलिदान

गौरतलब है कि खेजड़ी के संरक्षण का इतिहास राजस्थान में गहरा है। सितंबर 1730 में जोधपुर के खेजड़ली गांव में बिश्नोई समुदाय की अमृता देवी और 362 अन्य लोगों ने खेजड़ी पेड़ों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह घटना, जिसे खेजड़ली नरसंहार के नाम से जाना जाता है, भारत के पर्यावरण संरक्षण आंदोलन की पहली मिसाल है।
इस बलिदान की याद में हर साल 12 सितंबर को खेजड़ली दिवस मनाया जाता है। उस समय महाराजा अभय सिंह ने बिश्नोई समुदाय को वचन दिया था कि मारवाड़ में खेजड़ी के पेड़ नहीं काटे जाएंगे। लेकिन आज, नवीकरणीय ऊर्जा के नाम पर यह वचन टूटता नजर आ रहा है।

पश्चिमी राजस्थान में बढ़ रहा जनाक्रोश

बताते चलें कि खेजड़ी की कटाई के खिलाफ पश्चिमी राजस्थान में जनाक्रोश बढ़ता जा रहा है। हाल ही में बाड़मेर के शिव उपखंड में स्थानीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने खेजड़ी कटाई के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लिया और सरकारी अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि खेजड़ी केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहचान है। बिश्नोई समुदाय और अन्य पर्यावरण संगठन भी इस मुद्दे पर मुखर हैं।

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