Ramgarh Dam: क्या सच में छलकेगा रामगढ़ बांध ? विदेशी कंपनी और सरकार में करार… अतिक्रमणकारी क्यों बेचैन?
Ramgarh Dam: कृत्रिम बारिश एक वैज्ञानिक तकनीक है। बादलों में जो नमी होती है उसी को बारिश के रूप में जमीन पर गिराया जाता है। बादलों में जो नमी होती है, वह बूंद के रूप में बारिश बनकर गिरती है।
रामगढ़ बांध पर कृत्रिम बारिश के लिए ट्रॉयल के दौरान की तस्वीर- पत्रिका
जयपुर। रामगढ़ बांध फिर से लबालब होने का सपना देख रहे जयपुर के लोगों के अरमान यहां कृत्रिम बारिश की तैयारी ने जगा दिए हैं। इसका नजारा मंगलवार को कृत्रिम बारिश के ट्रायल के पहले दिन सामने आया। जब रामगढ़ बांध पर हजारों लोग पहुंच गए। लेकिन पहले दिन कृत्रिम बारिश का ट्रायल सफल नहीं हुआ। इसके बाद बांध क्षेत्र में फैली अव्यवस्था और रामगढ़ बांध भरने से चिंतित भराव क्षेत्र के अतिक्रमणकारियों ने इस पूरे प्रोजेक्ट को अव्यावहारिक बताकर बांध के पुनर्जीवन के प्रयासों को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें शुरू कर दीं।
राजस्थान पत्रिका ने इस पूरे मामले की पड़ताल की तो सामने आया कि राज्य सरकार और निजी कंपनी की ओर से समय पर कृत्रिम बारिश के ट्रायल की सभी जानकारियां आमजन तक नहीं पहुंचाई गईं। इससे लोगों में यह भ्रम फैल गया कि एक दिन के ट्रायल में बारिश होगी और बांध पूरी तरह भर जाएगा। जबकि कंपनी और राज्य सरकार के बीच पहले से ही इसके 60 ट्रायल किए जाने का निर्णय किया जा चुका था।
वह सच.. जिसे पहले पूरा नहीं बताया गया
कंपनी और सरकार की ओर से 12 अगस्त को आयोजित कार्यक्रम की स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई। लोगों में भ्रम फैल गया। लोगों का मानना था कि रामगढ़ में कृत्रिम बारिश करवाई जाएगी, रामगढ़ बांध में पानी आएगा। जबकि कंपनी ने सिर्फ डेमो कार्यक्रम रखा था। अगर बादलों की ऊंचाई कम होती तो ड्रोन से हल्की कृत्रिम बारिश का डेमो दिखाया जाता। लेकिन कंपनी ने परीक्षण के बाद जाना कि बादल 10 हजार फीट की ऊंचाई पर हैं और कंपनी के पास ड्रोन को उड़ाने की अनुमति सिर्फ 400 फीट तक की है। इस वजह से कंपनी ने कृत्रिम बारिश का कार्यक्रम सुबह ही टाल दिया।
2-3 हजार की भीड़ का अनुमान था
कंपनी का दावा है कि 12 अगस्त को डेमो के दौरान 2 से 3 हजार लोगों की भीड़ का अनुमान था। इसकी सूचना पुलिस और प्रशासन की ओर से दी गई थी। जिस स्थल से ड्रोन को उड़ाना था, वहां लोगों का प्रवेश वर्जित था। लेकिन अधिक संख्या में लोगों के आने से भीड़ बेकाबू हो गई और ड्रोन स्थल पर आ गई। कंपनी प्रतिनिधियों का तर्क है कि अधिक भीड़ आने से मोबाइल नेटवर्क के कारण जीपीएस सिग्नल लॉस हो गया। ड्रोन ऑटो लैंडिंग मोड़ में आ जाने के कारण नीचे आ गया।
वे बातें जो आप जानना चाहते हैं
सवाल : पहले दिन कृत्रिम बारिश नहीं थी तो क्या था ?जवाब : यह पहला ट्रायल था। परीक्षण के लिए बांध पर 60 क्लाउड सीडिंग की टेस्ट ड्राइव होगी।सितंबर तक ट्रायल होगा। कंपनी सारे प्रयोग अपने खर्च पर करेगी। परीक्षण के बाद राजस्थान सरकार के साथ कंपनी प्रयोग के डेटा शेयर करेगी। कृत्रिम बारिश के प्रयोग के पूरे डेटा और रिपोर्ट सरकार से साझा की जाएगी।
सवाल : कृत्रिम बारिश कब होगी ?जवाब : अभी कंपनी की ओर से रामगढ़ बांध और बादलों के परीक्षण का काम किया जा रहा है। सितंबर तक सरकार को रिपोर्ट सौंपी जाएगी। इसमें बताया जाएगा कि कृत्रिम बारिश के जरिये रामगढ़ बांध को किस तरह से भरा जा सकता है। कंपनी यह देखेगी कि बांध भराव के दौरान किस-किस तरह की परेशानियां हैं, जिनका समाधान करना जरूरी है। रिपोर्ट भेजने के बाद सरकार मंजूरी देगी तो अगले मानसून तक कंपनी की ओर से कृत्रिम बारिश से रामगढ़ बांध को भरने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। कंपनी की ओर से रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद अगर सरकार मंजूरी देती है तो रामगढ़ बांध भरने की कवायद होगी। इसके लिए फिर दूसरा ड्रोन आएगा। यह ड्रोन करीब डेढ़ करोड़ रुपए कीमत का होगा। यह 20 से 100 किलो वजन क्षमता का होगा।
सवाल : ड्रोन तो उड़ा ही नहीं, यह मजाक नहीं था ?जवाब : डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन से ड्रोन को 400 फीट ऊंचाई से अधिक उड़ाने की अनुमति नहीं मिली। अनुमति आने के बाद ही कृत्रिम बारिश परीक्षण का काम शुरू होगा। अभी 400 फीट ऊंचाई पर ही परीक्षण किया जा रहा है। बादलों की ऊंचाई अधिक होने से परीक्षण नहीं हो पा रहा है। पिछले दिनों जब बादलों की ऊंचाई कम थी, तब ड्रोन को बादलों तक पहुंचाया गया था, इसके बाद कृत्रिम बारिश का परीक्षण किया गया था।
सवाल : जीपीएस सिग्नल फिर से नहीं मिले तोजवाब : 10 हजार फीट ऊंचाई से अधिक ड्रोन उड़ाने की अनुमति मिलने के बाद कंपनी की ओर से फिर से डेमो रखा जाएगा। इस दौरान मल्टी नेटवर्किंग जैमर का उपयोग किया जाएगा, ताकि ड्रोन उड़ाते समय जीपीएस सिग्नल लॉस नहीं हो।
सवाल : दो तारीखें दी गईं, दोनों ही बार कृत्रिम बारिश नहीं करवा सकेजवाब : पिछली बार अत्यधिक बारिश के कारण रद्द किया गया था। इस बार पहला ट्रायल था। सवाल : बांध के अतिक्रमण हटाए बिना सिर्फ कृत्रिम बारिश से भर जाएगा
जवाब : अतिक्रमण तो सरकार को हटाने ही होंगे। कृत्रिम बारिश तो सिर्फ एक प्रयोग है।
वैज्ञानिक तकनीक से संघनन प्रक्रिया क्या है ?
यह वैज्ञानिक तकनीक है। बादलों में जो नमी होती है उसी को बारिश के रूप में जमीन पर गिराया जाता है। इसमें बादलों में संघनन प्रक्रिया पैदा की जाती है। बादलों में जो नमी होती है, वह बूंद के रूप में बारिश बनकर गिरती है। नमी के बूंद बनने की प्रक्रिया ही संघनन कहलाती है। वैज्ञानिक तकनीक से संघनन प्रक्रिया करवाई जाती है। इस प्रक्रिया से बादल से पानी की मात्रा को बारिश के रूप में गिरने की संभावना बढ़ जाती है। मानसून सीजन में ही इस प्रक्रिया को किया जाता है। इसके लिए उपयुक्त मौसम और बादलों की अनुकूलता होनी चाहिए। -राधेश्याम शर्मा, निदेशक मौसम केन्द्र, जयपुर
बादलों को रामगढ़ बांध से जाने को रोकेगा ड्रोन कृत्रिम बारिश प्लेन से कराई जाती रही है। लेकिन ड्रोन से प्रयोग किया जा रहा है। ड्रोन में क्षमता अनुसार सोडियम क्लोराइड और नमक को बादलों तक भेजा जाता है। अभी जो ड्रोन हैं वह सिर्फ कुछ मिलीमीटर बारिश ही कर सकता है। इसका प्रयोग रामगढ़ बांध में एक बार किया जा चुका है। लेकिन रिपोर्ट सौंपने के बाद जब सरकार की मंजूरी होगी, तब रामगढ़ बांध में बड़े ड्रोन से कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया शुरू होगी। तब तक बादलों का परीक्षण करेंगे।
बादल जैसे ही रामगढ़ बांध तक आएंगे, ड्रोन को बादलों तक पहुंचाया जाएगा। उन पर सोडियम क्लोराइड और नमक का छिड़काव करवाया जाएगा। ड्रोन बादलों को रामगढ बांध से आगे नहीं बढ़ने देगा। छिड़काव से कण बनेंगे जिनमें नमी होगी। नमी की मात्रा बढ़ने के बाद उस एरिया में कृत्रिम बारिश होगी। नमक का उपयोग इसीलिए करते हैं कि यह पर्यावरण और खेती से लिए नुुकसानदायक नहीं होता। -शशांक शर्मा, चीफ क्लाइमेंट ऑफिसर, कंपनी
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