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Bihar Elections: क्या महागठबंधन का गढ़ तोड़ पाएगा NDA? जानिए बलरामपुर सीट का समीकरण

Balrampur Seat: बलरामपुर विधानसभा सीट 2025 के चुनाव में एक रोचक रणक्षेत्र बनने जा रही है। महागठबंधन की मजबूत स्थिति और एनडीए की रणनीतिक कोशिशें इस सीट को चर्चा का केंद्र बनाएंगी।

पटनाAug 03, 2025 / 09:45 pm

Shaitan Prajapat

क्या महागठबंधन का गढ़ तोड़ पाएगा एनडीए? समझें बलरामपुर सीट का समीकरण (Patrika Graphic)

Bihar Assembly Elections: कटिहार जिले की बलरामपुर विधानसभा सीट बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक खास स्थान रखती है। 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई यह सामान्य वर्ग की सीट कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। बरसोई और बलरामपुर प्रखंडों को मिलाकर बनी यह सीट पश्चिम बंगाल की सीमा से सटी है, जहां गंगा, कोसी और महानंदा नदियों का संगम होता है। यह बाढ़-प्रवण क्षेत्र है, जहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। धान, गेहूं, मक्का, दालें और जूट प्रमुख फसलें हैं, लेकिन रोजगार की कमी के कारण पलायन एक बड़ी समस्या है। पश्चिम बंगाल से निकटता के चलते सीमावर्ती व्यापार भी इस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों का हिस्सा है।

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2020 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बलरामपुर की अनुमानित जनसंख्या 6,99,375 है, जिसमें 3,53,106 पुरुष और 3,46,269 महिला मतदाता शामिल हैं। इस सीट पर 60.80% मुस्लिम मतदाता हैं, जबकि अनुसूचित जाति 12% और जनजाति 1.62% हैं। यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण राजनीतिक दलों के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।

ऐतिहासिक महत्व

बलरामपुर का ऐतिहासिक महत्व भी उल्लेखनीय है। 1856 में यहां नवाब सिराज-उद-दौला और पूर्णिया के नवाबजंग के बीच बलरामपुर का युद्ध हुआ था, जिसमें करीब 12,000 लोग मारे गए थे। ब्रिटिश काल में यह एक महत्वपूर्ण अंतर्देशीय बंदरगाह था, लेकिन फरक्का बैराज और नदियों के प्रवाह में बदलाव के कारण इसकी स्थिति कमजोर हुई। हाल के वर्षों में सड़कों और पुलों के निर्माण ने इसे बिहार के द्वार के रूप में फिर से स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

पिछले चुनावों का विश्लेषण

बलरामपुर विधानसभा सीट पर पिछले तीन चुनावों का इतिहास रोचक रहा है। 2010 में निर्दलीय हिंदू उम्मीदवार दुलाल चंद्र गोस्वामी ने सीपीआई(एमएल) के महबूब आलम को हराया था। मुस्लिम वोटों का कई दलों में बंटना उनकी जीत का कारण बना। बाद में गोस्वामी जदयू में शामिल हो गए। 2015 में जदयू-भाजपा गठबंधन टूटने के बाद जदयू ने गोस्वामी को फिर से उतारा, लेकिन सीपीआई(एमएल) के महबूब आलम ने 20,419 वोटों से जीत हासिल की। 2020 में महागठबंधन के हिस्से के रूप में सीपीआई(एमएल) के महबूब आलम ने वीआईपी के वरुण झा को 53,597 वोटों के भारी अंतर से हराया। यह जीत बलरामपुर को महागठबंधन का गढ़ बनाती है।

2025 चुनाव की रणनीति

2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में बलरामपुर सीट पर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हैं। महागठबंधन, खासकर सीपीआई(एमएल), इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने के लिए प्रयासरत है। दूसरी ओर, एनडीए इस सीट को अपने कब्जे में लेने के लिए रणनीति बना रहा है। मतदाता सूची के पुनरीक्षण जैसे मुद्दों को वोट ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल करने की कोशिशें हो रही हैं। मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण सामुदायिक समीकरण और स्थानीय मुद्दे, जैसे बाढ़ प्रबंधन और पलायन, मतदाताओं के बीच चर्चा का केंद्र हैं।

चुनौतियां और संभावनाएं

बलरामपुर में बाढ़ और पलायन जैसी समस्याएं स्थानीय नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती हैं। इन मुद्दों को हल करने की दिशा में ठोस कदम उठाने वाला दल मतदाताओं का भरोसा जीत सकता है। इसके अलावा, सीमावर्ती व्यापार और बुनियादी ढांचे के विकास जैसे मुद्दे भी मतदाताओं को प्रभावित कर सकते हैं।

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