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सरेंडर का नया ट्रेंड! नक्सली लौटे मुख्यधारा में, लेकिन संसाधन नहीं छोड़े… क्या हथियार छोड़कर आना रणनीति का हिस्सा?

Naxal Arms Cache in Bastar: पिछले डेढ़ साल में बस्तर समेत छत्तीसगढ़ के कई जिलों में नक्सली सरेंडर का सिलसिला तेज हुआ है।

जगदलपुरAug 12, 2025 / 12:44 pm

Khyati Parihar

सरेंडर का नया ट्रेंड! (फोटो सोर्स- पत्रिका)

सरेंडर का नया ट्रेंड! (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Naxal Arms Cache in Bastar: पिछले डेढ़ साल में बस्तर समेत छत्तीसगढ़ के कई जिलों में नक्सली सरेंडर का सिलसिला तेज हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि बीते 15 महीनों में कुल 1580 नक्सली हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौट आए हैं। इनमें 1220 पुरुष और 360 महिला नक्सली शामिल हैं।
यह स्थिति एक ओर जहां सुरक्षा बलों की रणनीति की सफलता का संकेत देती है, वहीं दूसरी ओर एक नए और गंभीर ट्रेंड की तरफ भी इशारा करती है। सरेंडर करने वाले नक्सली अपने हथियार संगठन में ही छोड़कर आ रहे हैं।

कैसे बदल रहा है नक्सली कैडर

सरेंडर के इन बड़े आंकड़ों से यह साफ है कि नक्सली संगठन के अंदर मनोबल गिरा है। लगातार सुरक्षा बलों की कार्रवाई, विकास कार्यों की पहुंच, और पुनर्वास नीति के आकर्षण ने कई कार्यकर्ताओं को हिंसा से अलग होने के लिए प्रेरित किया है। खासकर बस्तर के गहरी पहाड़ियों और जंगलों में सक्रिय कैडर अब पहले की तुलना में कमजोर हुआ है।

हथियार न छोड़ने का पैटर्न क्यों खतरनाक जानिए?

नक्सल मामलों के जानकार इस ट्रेंड को बेहद चिंतनीय बताते हैं। उनका कहना है कि सरकार को हथियार पर भी फोकस करना चाहिए क्योंकि बस्तर के जंगलों में अब भी जगह-जगह पर नक्सली सक्रिय हैं और उनके पास अब भी संसाधनों की कमी नहीं है। हथियारों का संगठन के पास रहना, भविष्य में सुरक्षा के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
  • नक्सली सरेंडर करते समय हथियार छिपाकर अपने ग्रुप या ऊपरी कमांड के पास छोड़ जाते हैं।
  • इससे संगठन की मारक क्षमता तुरंत कम नहीं होती।
  • जंगल में अब भी बड़ी संख्या में ऑटोमैटिक राइफल, विस्फोटक, और अन्य घातक हथियार मौजूद हैं।

आईईडी का खौफ कायम, इनपुट नहीं मिल रहे

बस्तर में एक ओर नक्सली बिना हथियार के वापस लौट रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर उनके आईईडी के संबंध में भी कुछ खास इनपुट नहीं मिल रहा है। आईईडी के पर्याप्त इनपुट नहीं मिलने की वजह से बीते 15 महीने में बस्तर में 10 जवानों की शहादत आईईडी विस्फोट में हो चुकी है। बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा और नारायणपुर ऐसे जिले हैं जहां की सडक़ों पर नक्सलियों ने बड़े पैमाने पर आईईडी प्लांट कर रखी है, बावजूद इसके इनपुट्स के अभाव में फोर्स आईईडी तक नहीं पहुंच पा रही है।
सरेंडर का नया ट्रेंड! (फोटो सोर्स- पत्रिका)

हथियार छोड़कर आना रणनीति का हिस्सा

नक्सलियों का सुप्रीम लीडर और नक्सलियों की सेंट्रल कमेटी का जनरल सेक्रेटरी बसव राजू इसी साल मई के महीने में अबूझमाड़ में मारा गया। उसके मारे जाने के बाद से संगठन में अफरा-तफरी की स्थिति है। निचला कैडर लगातार सरेंडर कर रहा है, लेकिन जानकार कह रहे हैं कि निचला कैडर भले ही बिखर रहा हो लेकिन बड़े लीडर अब भी सेफ जोन में बने हुए हैं। नक्सलियों का बिना हथियार के लौटना भविष्य की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।

बड़े पैमाने पर हथियार संगठन के पास

बस्तर में समय-समय पर फोर्स की सर्चिंग पार्टी को नक्सलियों के डंप मिलने की खबर सामने आ रही है, लेकिन जिस अनुपात में डंप पिछले कुछ महीनों में मिले हैं उससे ज्यादा हथियार नक्सलियों के पास अब भी हैं। साल 2000 के बाद से बस्तर में नक्सलियों का वर्चस्व रहा। मुठभेड़ के बाद वे हथियार लूटते थे। कई थानों पर हमले कर हथियार लूटे हैं।

सरकार के सामने चुनौती

छत्तीसगढ़ सरकार और सुरक्षा बलों के लिए यह समय दोहरी रणनीति अपनाने का है –

  1. सरेंडर नीति को और आकर्षक बनाना, ताकि हथियार समेत आत्मसमर्पण के लिए प्रोत्साहन मिले।
  2. जंगलों में हथियारों की खोज और जब्ती के लिए विशेष अभियान चलाना।
नक्सली गतिविधियों पर नजर रखने वाले बताते हैं कि संगठन हथियारों को सुरक्षित ठिकानों पर गाड़कर या छुपाकर रखते हैं। इससे नए भर्ती हुए कैडर को तुरंत सशस्त्र किया जा सकता है।

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