तेजस्वी यादव और राहुल गांधी बिहार चुनाव का बहिष्कार कर सकते हैं। Patrika
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर बड़ा सियासी बवाल खड़ा हो गया है। चुनाव आयोग के 61 लाख वोटरों के नाम हटाने की बात पर राजनीतिक तापमान चढ़ गया है। इस खुलासे के बाद तेजस्वी यादव और राहुल गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं ने सरकार पर ‘वोटर चोरी’ का गंभीर आरोप लगाया है। तेजस्वी ने यहां तक कह दिया कि अगर ऐसी स्थिति रही तो चुनाव (Bihar Assembly Polls) में हिस्सा लेने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यानी विपक्ष संभावित तौर पर चुनाव का बहिष्कार कर सकता है।
संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वह तय समय पर चुनाव कराए, चाहे कोई भी पार्टी मैदान में उतरे या न उतरे। अगर केवल सत्तारूढ़ दल या कुछ निर्दलीय उम्मीदवार ही नामांकन भरते हैं, तब भी चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी। अगर किसी सीट पर सिर्फ एक ही वैध उम्मीदवार होता है तो उसे बिना मतदान के निर्विरोध विजेता घोषित किया जा सकता है। यानी अगर विपक्षी दल चुनाव नहीं लड़ते हैं तो भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं रुकेगी, जब तक कि कोई प्राकृतिक आपदा या व्यापक हिंसा जैसी असाधारण परिस्थिति न हो।
क्या सुप्रीम कोर्ट रोक सकता है ऐसा चुनाव?
विपक्षी दल सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं और दलील दे सकते हैं कि प्रतिस्पर्धा रहित चुनाव लोकतंत्र की आत्मा के खिलाफ है। वे पुराने मामलों का हवाला देकर पारदर्शिता और वास्तविक प्रतिनिधित्व की मांग कर सकते हैं। हालांकि, अब तक सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी चुनाव को सिर्फ इसलिए नहीं रोका है कि विपक्ष ने बहिष्कार किया हो।
क्या संभावना है?
भारत के चुनावी इतिहास में अब तक कोई ऐसा उदाहरण नहीं है, जहां सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने मिलकर चुनाव का बहिष्कार किया हो। कुछ हिस्सों में आंशिक बहिष्कार, वॉकआउट या नामांकन न भरने जैसे मामले जरूर हुए हैं, लेकिन पूर्ण विपक्षी बहिष्कार अब तक नहीं हुआ है।
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