दुर्व्यवहार के पीछे के कारण विविध हैं – सामाजिक ढांचे में बदलाव, संयुक्त परिवार की विघटन, रोजगार की व्यस्तता, नैतिक मूल्यों में गिरावट, बुजुर्गों की आर्थिक आत्मनिर्भरता का खत्म होना, शारीरिक अक्षमता के प्रति असहिष्णुता और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज की उदासीनता। विशेष रूप से तेजी से शहरीकरण और वैश्वीकरण ने युवा पीढ़ी को बुजुर्गों से अलग-थलग कर दिया है। डिजिटल युग में जहाँ संवाद तकनीकी हो गया है, वहाँ भावनात्मक जुड़ाव क्षीण होता जा रहा है। सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के हित में कई कानून बनाए हैं, जिनमें प्रमुख है वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007। इसके अंतर्गत बुजुर्ग माता-पिता अपने संतान से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं और कानूनी सहायता प्राप्त कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, कई राज्य सरकारों ने वृद्धाश्रम, मुफ्त चिकित्सा सेवाएं, और हेल्पलाइन जैसे उपाय किए हैं। उदाहरण के लिए, 14567 राष्ट्रीय हेल्पलाइन को बुजुर्गों की सहायता के लिए स्थापित किया गया है, जहां वे अपने अनुभव साझा कर सकते हैं और मदद पा सकते हैं।
हालांकि, कानून और संस्थान तभी प्रभावी हो सकते हैं जब समाज की चेतना जागृत हो। हमें यह समझना होगा कि बुजुर्गों का सम्मान केवल सामाजिक कर्तव्य नहीं, बल्कि नैतिक उत्तरदायित्व है। उनके साथ बिताया गया समय, उनके अनुभवों को सुनना, उनकी आवश्यकताओं की परवाह करना — ये सभी एक स्वस्थ और मानवीय समाज की पहचान हैं।
बुजुर्गों की उपेक्षा केवल उनके जीवन को ही नहीं, हमारे आने वाले समय को भी प्रभावित करती है। आज जो पीढ़ी युवावस्था में है, वह कल वृद्धावस्था में पहुंचेगी। यदि हम आज बुजुर्गों के लिए संवेदनशील नहीं हैं, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमारे लिए भी वैसी ही होंगी। यह एक सामाजिक चक्र है जिसमें मानवीय व्यवहार की बुनियादी भावना को बनाए रखना आवश्यक है।
आज जरूरत है कि हम केवल बुजुर्गों के अधिकारों के लिए आवाज़ न उठाएं, बल्कि उन्हें वह गरिमा दें जिसके वे हकदार हैं। परिवार में संवाद को बढ़ाएं, पीढ़ियों के बीच समझ का पुल बनाएं, और यदि संभव हो तो सप्ताह में कुछ घंटे केवल अपने माता-पिता या दादा-दादी के साथ बिताएं। उनकी कहानियाँ सुनें, उनके अनुभवों को आत्मसात करें, उन्हें महसूस कराएं कि वे अकेले नहीं हैं। बुजुर्ग केवल बीते कल के गवाह नहीं, वे आज के मार्गदर्शक और आने वाले कल के आधार हैं। उनके लिए सम्मान केवल शब्दों में नहीं, कर्म में प्रकट होना चाहिए। उनके जीवन की संध्या को उजास से भरना हमारा कर्तव्य है क्योंकि जब वे मुस्कुराते हैं, तो हमारे संस्कार जीवित होते हैं।