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नए हथियार: युद्ध में कोडिंग और चिप की बढ़ रही भूमिका

-अजय चौधरी
(लेखक पदम्म भूषण से सम्मानित व एचसीएल के को-फाउंडर हैं )

जयपुरMay 07, 2025 / 12:50 pm

विकास माथुर

दुनिया में अस्थिरता बढ़ रही है। आज की दुनिया में जब एक ओर देशों के बीच खुले युद्ध की घटनाएं घट रही हैं, वहीं दूसरी ओर एक नए प्रकार का युद्ध भी सामने आ रहा है, जो चुपचाप, बिना गोलीबारी के लड़ा जाता है। लेकिन यह पारंपरिक युद्ध जितना ही खतरनाक है। इसे ‘छाया युद्ध’ कहा जा सकता है और इसमें सेमीकंडक्टर, साइबर हमले, झूठी खबरें, आर्थिक दबाव और डिजिटल जासूसी प्रमुख हथियार बन चुके हैं।
भारत जैसे देश के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह इस बदलती युद्ध-प्रकृति को समझे और इसके लिए खुद को तैयार करे। पहले युद्धों में सेनाएं मैदान में उतरती थीं, टैंक चलते थे  और मिसाइलें दागी जाती थीं। लेकिन आज का युद्ध इस तरह के हथियारों के बिना भी लड़ा जा सकता है। अब यह युद्ध कंप्यूटर कोड, चिप्स, इंटरनेट नेटवर्क और डेटा के जरिए हो रहा है। इन सभी के बीच एक क्षेत्र है जिसे धूसर क्षेत्र या ग्रे जोन कहा जाता है। यह वह जगह है, जहां न तो खुला युद्ध होता है और न ही पूर्ण शांति होती। यहां देश एक-दूसरे को परेशान करते हैं, लेकिन इस तरह कि कोई उन्हें सीधे तौर पर दोषी न ठहरा सके।
इस धूसर क्षेत्र में साइबर हमले, अफवाहें फैलाना, मीडिया को प्रभावित करना, राजनीतिक हस्तक्षेप और आर्थिक दबाव जैसे हथियार इस्तेमाल होते हैं। यह सब कुछ इस हद तक ही किया जाता है कि सामने वाला देश सैन्य कार्रवाई करने से हिचकिचाए। अब युद्ध सेमीकंडक्टर यानी माइक्रोचिप्स और डिजिटल तकनीक से लड़े जाएंगे। हाल ही एक अमरीकी सीनेटर ने कहा था कि अगला बड़ा युद्ध सेमीकंडक्टर्स के लिए लड़ा जाएगा। यह कथन महज चेतावनी नहीं है, बल्कि एक सच्चाई है जो दिन-ब-दिन सामने आ रही है। दुनिया अब डेटा, सूचना और प्रोसेसिंग पावर के लिए संघर्ष कर रही है। क्वांटम कंप्यूटिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता  और स्वचालित प्रणालियां अब युद्ध के नए मोर्चे बन गए हैं।
अमरीका, चीन, रूस और अन्य ताकतवर देश इन क्षेत्रों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। रैंड कॉर्पोरेशन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2030 तक ये तकनीकें भविष्य के युद्धों की दिशा तय करेंगी। हाल के वर्षों में अमरीका ने चीन को उच्च गुणवत्ता वाली चिप तकनीक देने पर रोक लगा दी है। अमरीका ने जापान और नीदरलैंड्स जैसे अपने सहयोगियों को भी इस रणनीति में शामिल कर लिया है, ताकि चीन को उन्नत चिप तकनीक से वंचित किया जा सके।
इसके जवाब में चीन ने भी अमरीका की माइक्रोन कंपनी की चिप पर प्रतिबंध लगा दिया। इस तरह दोनों देशों के बीच एक तरह का तकनीकी शीत युद्ध शुरू हो गया है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि सेमीकंडक्टर अब केवल व्यापारिक उत्पाद नहीं हैं, बल्कि रणनीतिक हथियार बन गए हैं। दुनियाभर में रक्षा खर्च लगातार बढ़ रहा है। अब यह खर्च सिर्फ सेना पर नहीं, बल्कि क्वांटम सिस्टम, एआइ और साइबर सुरक्षा जैसे नए क्षेत्रों पर भी किया जा रहा है। भारत एक तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था है, जहां 1.3 अरब से ज्यादा लोग इंटरनेट से जुड़े हैं।
आधार, यूपीआइ, डिजिलॉकर और अन्य डिजिटल सेवाओं के जरिए भारत ने एक मजबूत डिजिटल ढांचा तैयार किया है। लेकिन वहीं दूसरी ओर, हम अब भी सेमीकंडक्टर और कुछ महत्त्वपूर्ण तकनीकों के लिए चीन जैसे देशों पर निर्भर हैं। 2023-24 में भारत ने लगभग 90 अरब डॉलर मूल्य का इलेक्ट्रॉनिक सामान आयात किया, जिसमें चीन की हिस्सेदारी 44 प्रतिशत से अधिक थी। हमारी सबसे उन्नत सॉफ्टवेयर सेवाएं भी अक्सर उन हार्डवेयर पर चलती हैं, जो विदेशी हैं और असुरक्षित हो सकते हैं। यह एक बड़ी रणनीतिक कमजोरी है।
अब सवाल यह है कि इस बदलती युद्ध-प्रकृति में भारत को क्या करना चाहिए? इसका उत्तर यह है कि देश को स्वदेशी तकनीक में निवेश करना होगा। सेमीकंडक्टर और क्वांटम कंप्यूटिंग क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना बहुत आवश्यक हो गया है। इस दिशा 6,000 करोड़ रुपए का राष्ट्रीय क्वांटम मिशन एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन इसे तेज करने और बड़े स्तर पर बढ़ाने की जरूरत है।
हमारी विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित में प्रतिभा विश्व स्तर की है। हमें बस इसे सही दिशा, संसाधन और समर्थन देना है। क्वांटम कंप्यूटर विकसित होते ही  मौजूदा एन्क्रिप्शन पद्धतियां बेकार हो जाएंगी। इसलिए भारत को अपने सरकारी, रक्षा और वित्तीय संचार में ऐसी नई एन्क्रिप्शन तकनीकों को लागू करना होगा जो क्वांटम हमलों से बचा सकें। तीसरी महत्त्वपूर्ण बात, आधार, यूपीआइ, डिजि लॉकर और इंडिया स्टैक जैसे प्लेटफार्म आज सिर्फ सुविधाएं नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संपत्ति हैं। इनकी सुरक्षा देश की सीमाओं की सुरक्षा जितनी ही महत्त्वपूर्ण है। लिहाजा भारत को इनकी सुरक्षा के भी इंतजाम करने होंगे।
और अंत में भारत को नीति निर्माण, पूंजी निवेश, अनुसंधान और उत्पादन के हर स्तर पर सेमीकंडक्टर और साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का हिस्सा बनना चाहिए, न कि केवल उद्योग या आइटी मंत्रालय का। दुनिया में जब भी नई तकनीक आती है तो वह सिर्फ विकास का साधन नहीं होती, वह शक्ति का साधन भी बन जाती है। सेमीकंडक्टर, साइबर स्पेस, डेटा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता अब वही साधन हैं। भारत के पास प्रतिभा है, इच्छाशक्ति है, लेकिन अब जरूरत है एक स्पष्ट रणनीति और मिशन की।

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