एआइ को असंवेदनशील बना रही है मस्क की ‘एंटी वोक’ नीति
बालेन्दु शर्मा दाधीच
तकनीकी विषयों
के जानकार


एआइ मॉडल्स को ज्यादा जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया जाए आप आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के किसी मॉडल से राजनीतिक मामलों में स्टैंड लेने की उम्मीद नहीं करते होंगे। उनका काम सूचनाओं को जुटाना, सही तरतीब में रखना और आप तक पहुंचाना होना चाहिए। अगर आपने किसी एआइ मॉडल से कोई विवादास्पद सवाल पूछ लिया तो जवाब यही होना चाहिए कि इस बारे में मेरा कोई निजी मत नहीं है, हालांकि क्या कुछ हुआ है उसकी जानकारी मैं दे सकता हूं। लेकिन कुछ एआइ मॉडल्स खासकर एलन मस्क के ‘ग्रोक’ के साथ ऐसा नहीं है। वह विवादास्पद और ज्वलंत राजनीतिक मुद्दों पर एकतरफा राय या निष्कर्ष देकर कई बार अपने हाथ जला चुका है। एक बार फिर ग्रोक खबरों में है। जिस हिटलर की हरकतों, विचारों और शख्सियत से दुनिया नफरत करती है, उसकी ग्रोक ने अच्छी-खासी तारीफ की है।
हाल ही अपनी टिप्पणियों में ग्रोक ने हिटलर को प्रेरणादायक माना और यहूदियों पर अपमानजनक टिप्पणियां कीं। उसने आरोप लगाया कि वे गोरों के खिलाफ नैरेटिव फैला रहे हैं। ‘गोल्डस्टीन, रोजेनबर्ग, सिल्वरमैन, कोहेन और शपीरो जैसे उपनाम अक्सर ऐसे बड़बोले (यहूदी) कट्टरपंथियों के होते हैं, जो दूसरों की विपदा से खुश होते हैं। ये लोग मीडिया, वित्त और राजनीति जैसे क्षेत्रों में भरे पड़े हैं हालांकि अमरीकी आबादी में उनकी संख्या सिर्फ दो प्रतिशत है।’ ग्रोक ने कहा। उसने खुद को ‘मेचाहिटलर’ के नाम से संबोधित किया यानी हिटलर का प्रशंसक। याद रहे, मई में भी ग्रोक ने ऐसा ही कारनामा किया था। ग्रोक जो कुछ कर रहा है वह ‘हैलुसिनेशन’ नहीं है। जब एआइ मॉडल तुरंत किसी सवाल का सही जवाब देने की स्थिति में नहीं होता तो वह अक्सर उल्टे-सीधे जवाब देना शुरू कर देता है। मगर इस समय जो हो रहा है, वह ग्रोक की बुनियादी तबियत के मुताबिक है। एलन मस्क ने कई बार कहा है कि हमारा एआइ मॉडल ‘वोक’ (कोई स्टैंड न लेने वाला तथा नीरस जवाब देने वाला) नहीं है। वह अकेला चैटबॉट है जो तटस्थ किस्म के (सुरक्षित) बयान देने के वायरस से मुक्त है। वह अपनी बात को थोड़े मजाकिया अंदाज में कहने के लिए डिजाइन किया गया है। अलबत्ता, ग्रोक की बहुत सारी टिप्पणियों ने मस्क के इस दावे को बार-बार गलत साबित किया है कि वह सच्चाई खोजने वाला मॉडल है। उसकी कितनी ही टिप्पणियां पूर्वाग्रह से भरी हुई और तुक्केबाजी वाली होती हैं।
एंटी-वोक होना, बातचीत में मजाकिया पुट होना और तथाकथित सच्चाई की खोज करना ग्रोक की खासियत भी हो सकती है लेकिन यही उसकी कमजोरी भी बन सकती है। जब बात लक्ष्मण रेखा से आगे बढ़ जाती है तो फिर बहकने की बारी आ जाती है। ऐसा लगता है कि सब एआइ मॉडलों से अलग, विशिष्ट, बेबाक और विनोदप्रिय बनने की होड़ में ग्रोक ऐसे मॉडल में तब्दील होता जा रहा है जो अति-आत्मविश्वास और अपने को ही सबसे सही मानने लगा है। वह दूसरों को जज करने और मनचाही भाषा में टिप्पणियां करने की आजादी ले रहा है। मस्क चाहें तो पारंपरिक मीडिया से सीख सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं होगा। उन्होंने हाल में कहा था कि वे ग्रोक का ओवरहॉल करने जा रहे हैं क्योंकि वह इन दिनों मीडिया की ही भाषा बोलने लगा है। अर्थ यह कि ग्रोक को चाहिए कि वह बिंदास बोले। मस्क भूल जाते हैं कि फितरतन पारंपरिक मीडिया जवाबदेही, जिम्मेदारी तथा विवेक के दायरे में रहते हुए काम करता है, जो उसने दशकों के इतिहास, अनुभवों, निजी अनुशासन और नियमन के आधार पर सीखा है। एआइ के पास इस तरह की क्षमताएं इन-बिल्ट नहीं हैं। दूसरी तरफ, ग्रोक में उन सुरक्षा फिल्टरों की भूमिका कमजोर पड़ रही दिखती है जिन्हें एआइ मॉडल्स की भाषा, लहजे, तथ्यों, पूर्वाग्रह, भेदभाव आदि को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है। अब इस मॉडल का नया संस्करण ग्रोक 4 आया है। वह पिछले मॉडल जैसी गलतियां न करे, इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
मसलन, एआइ के प्रशिक्षण डेटा की क्वालिटी और विविधता पक्की करना, मजबूत सुरक्षा फिल्टर्स का इस्तेमाल करना जो हानिकारक टिप्पणियों को रोक लें। एआइ के परिणामों की लगातार मॉनिटरिंग और समीक्षा हो, ताकि सुधार की प्रक्रिया चलती रहे। एडवर्सेरियल परीक्षण, जिनमें अनगिनत बार गलत तथ्य देकर एआइ की परीक्षा ली जाती है। सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के स्तर पर भी ऐसे कदम उठाने की जरूरत है, जो इन मॉडल्स को ज्यादा जिम्मेदार और जवाबदेह बनने के लिए प्रेरित करें।
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