आजादी के बाद पाकिस्तान में नदी तंत्र का, जो भी विकास हुआ है वह दूसरे मुल्कों से आई रकम की वजह से हुआ है। इसमें पाकिस्तान का खुद का कोई पैसा नहीं लगा है। इस संधि को पहले ही रद्द कर देना चाहिए था। यह अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच समझौता है। इसमें कोई मध्यस्थ के रूप में नहीं है। इस संधि को स्थगित करना कमजोर कदम है। इसे रद्द ही करना चाहिए। सिंधु नदी तंत्र का जल पाकिस्तान के लिए नकेल है, क्योंकि हम ऊपरी तटीय राष्ट्र हैं। चूंकि सभी उत्तर पश्चिमी नदियां भारत से निकलती हैं और फिर पाकिस्तान में जाती हैं, उस दृष्टि से देखा जाए तो भारत ऊपरी तटीय राष्ट्र और पाकिस्तान निचला तटीय राष्ट्र है। यानी भारत ऊपरी तटीय राष्ट्र होने के नाते अच्छी स्थिति में था।
कायदे से भारत अपने हितों को देखते हुए न्यायपूर्ण समझौता करा सकता था। जब यह नदी तंत्र बंटा तो अंग्रेजों ने जो इस क्षेत्र में, जो बांध व नहरें बनाई थीं वह सभी पाकिस्तान में चली गईं। भारत में कुछ नहीं रहा। अंग्रेजों ने अपने समय में सिंधु, झेलम, चिनाब इस सभी पर नहरों का निर्माण कराया था। यानी बंटवारे के समय पाकिस्तान वैसे तो निचला तटीय क्षेत्र था लेकिन बांध निर्माण और सिंचाई में वह हमसे बहुत आगे था। क्योंकि उस समय भाखड़ा बांध भी नहीं बना था। सारा इंड्स नहरी तंत्र पाकिस्तान में चला गया। भारत अभाव व पिछड़ेपन की स्थिति में रह गया। नेहरूजी की सबसे बड़ी गलतियों में लोग कश्मीर और चीन को मानते हैं, लेकिन मेरी नजर में उनकी सबसे बड़ी गलती सिंधु जल संधि रही। एक तरफ हम ऊपरी तटीय राष्ट्र थे, लेकिन उसके बावजूद हम अपने हितों के साथ न्याय नहीं कर पाए।
पाकिस्तान निचला तटीय राष्ट्र होने के बावजूद इस संधि से सबसे ज्यादा फायदे में रहा। हमारे सिंधु नदी तंत्र क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात आते हैं। यहां पर उस समय कृषि योग्य भूमि थी, लेकिन पानी नहीं था। हमारे लिए पानी की जरूरत सबसे ज्यादा थी। उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया गया। सिंचाई में पंजाब का कुछ क्षेत्र ही आया था। सतलज के आसपास का सारा क्षेत्र सूखा था। ऐसा मुझे लगता है कि यदि हम इस संधि पर ज्यादा ध्यान देते तो कश्मीर का मसला भी उसी समय सुलझ सकता था। इस संधि के बदले में ही पाकिस्तान कश्मीर का मुद्दा छोड़ सकता था। इसी संधि की वजह से आज हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के बीच अंतरराज्यीय जल विवाद है। संधि में भारत के हितों का ध्यान रखा जाता तो पर्याप्त से ज्यादा पानी मिल जाता। आज यदि भारत इसके पानी का इस्तेमाल करना चाहे तो कर सकता है। इससे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात की भूमि लहलहा सकती है।
पर्याप्त मात्रा में हर राज्य को पानी मिल सकता है। सिंधु नदी तंत्र के सूखे क्षेत्र की ओर नए निर्माण कर पानी को मोड़ सकते हैं। नदी जल के इस विकास को करने के लिए भारत सक्षम है। जल होगा तो प्रोजेक्ट बनेंगे। आज यदि इस पर काम करते हैं तो यह तुरंत शुरू हो जाएगा, काफी इंफ्रास्ट्रक्चर बना हुआ है। पहले हरियाणा और राजस्थान में कहां नहरें थीं, अब उनमें और पानी डाला जा सकता है। पानी को मोडऩे के लिए भाखड़ा नांगल बांध और फिरोजपुर बैराज का उपयोग किया जा सकता है। जो निर्माण हमने आजादी के बाद किया है, आज चाहें तो उसी से हम इस पानी को इस्तेमाल करना शुरू कर सकते हैं।