नगरीय विकास विभाग की ओर से इन कामों को करने के लिए अपनी एक बीआरएस दर निर्धारित की हुई है। पर हालत यह है कि कम दर पर भी काम करने के लिए फर्मों की कतार लगी हुई है। इसको देखकर कई सवाल सामने आ रहे हैं, जिसमें सबसे प्रमुख सवाल यह है कि काम निर्धारित दर से कम पर करने वाले गुणवत्ता को कैसे बरकरार रख पाएंगे। हालांकि कटु सत्य यह भी है कि आज प्रदेश के अधिकांश शहरों में नगरीय विकास के करीब अस्सी फीसदी काम निर्धारित दर से करीब दो तिहाई दर पर ही किए जा रहे हैं। इसको देखते हुए लगता है कि निर्माण लागत कम कर गुणवत्ता से समझौता किया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो फिर नगरीय विकास विभाग की ओर से जारी बीआरएस दर को अब तक रिवाइज क्यों नहीं किया गया है?
ये सवाल इसलिए भी लाजमी है कि हर साल प्रदेश के शहरों में करीब दस हजार करोड़ रुपए के विकास कार्य करवाए जा रहे हैं। ऐसे में रेट रिवाइज होने पर विभाग अतिरिक्त बजट का भी अन्य विकास कार्यो में उपयोग कर सकेगा। इस तमाम कवायद के बीच अब नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने सरकार के स्तर पर एक थर्ड पार्टी एक्सपर्ट टीम बनाने की तैयारी कर ली है। इस टीम में विभागीय इंजीनियर्स के साथ बाहरी एक्सपर्ट को शामिल किया जा रहा है, जो कि प्रदेश के किसी भी शहर में कार्यों की गुणवत्ता की जांच के लिए औचक निरीक्षण करेंगे। सरकार की ओर से जांच के लिए बनाई जा रही टीम को एक सार्थक पहल माना जा सकता है। पर इसके बनने के बाद निकायों, प्राधिकरण व न्यासों के स्तर पर काम कर रही क्वालिटी कंट्रोल टीम का क्या रोल रहेगा?
विकास कार्यों की गुणवत्ता को लेकर आ रही शिकायतों पर क्या कार्रवाई की जाएगी? कम दर पर काम कर रही फर्मों के क्वालिटी मैनेजमेंट को किस तरह से परखा जाएगा? कुल मिलाकर तमाम कवायद के बीच इन सवालों के जवाब अधूरे हैं। पूर्व की शिकायतों को लेकर सरकार का पक्ष स्पष्ट नजर नहीं आ रहा है। आज जरूरत है कि सरकार वर्तमान में चल रहे विकास कार्यों के साथ पूर्व में आई शिकायतों की भी मॉनिटरिंग करे।
-शरद शर्मा
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