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भारत की सॉवरेन रेटिंग बढ़ी, लेकिन एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सवाल

रजत मिश्रा, उद्यमी, लेखक और शोधार्थी

जयपुरAug 21, 2025 / 02:07 pm

Shaily Sharma

आपका अच्छा क्रेडिट स्कोर जैसे आपको घर या गाड़ी का लोन थोड़ा सस्ते में दिलाता है, वैसे ही किसी देश की ऊंची सॉवरेन रेटिंग निवेशकों को भरोसा देती है कि उस देश की साख विश्वसनीय है। इससे उस देश की सरकार या कंपनियों के जरिए उधार लेने की लागत कम होती है और विदेशी पूंजी आकर्षित होती है। एसएंडपी, मूडी और फिच जैसी रेटिंग एजेंसियां आर्थिक विकास, वित्तीय सेहत, विदेशी व्यापार संतुलन, संस्थागत मजबूती व मौद्रिक नीतियों जैसे पहलुओं को देखकर रेटिंग देती हैं लेकिन ये रेटिंग्स अक्सर पूरी कहानी नहीं बतातीं। खासकर भारत और चीन जैसे उभरते दिग्गजों के लिए, जहां ऐसा लगता है कि पश्चिमी देशों को पक्षपातपूर्ण तरीके से तरजीह दी जाती है।
हाल में एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत की दीर्घकालिक सॉवरेन रेटिंग को बीबीबी माइनस से बढ़ाकर बीबीबी पर दिया। साथ ही ‘स्थिर आर्थिक संभावना’ भी जताई है। देश की ऐसी पिछली बढ़ोतरी 18 साल पहले हुई थी। इससे निवेश-ग्रेड श्रेणी में भारत मजबूत तो हुआ है पर फिर भी निचले स्तर पर। बीबीबी का मतलब है कि भारत ‘वित्तीय जिम्मेदारियों को पूरा करने की पर्याप्त क्षमता रखता है, लेकिन प्रतिकूल आर्थिक परिस्थितियों से प्रभावित हो सकता है।’ एसएंडपी ने भारत को ‘दुनिया की सबसे बेहतरीन अर्थव्यवस्थाओं में से एक’ बताया, जिसमें महामारी के बाद 2022 से 2024 तक औसतन 8.8त्न की रियल जीडीपी ग्रोथ रही। एशिया-प्रशांत में सबसे ज्यादा। अगले तीन साल तक 6.8त्न सालाना विकास की उम्मीद है। ये अपग्रेड बदलते भारत को दर्शाता है, लेकिन सवाल भी उठाता है। इसमें इतना वक्त क्यों लगा? क्यों भारत जैसे विकासशील देशों की ताकत को कम आंका जाता है, जबकि यूरोप की कई कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को बेहतर रेटिंग मिलती है?
2020-21 के भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत को निवेश-ग्रेड की सबसे निचली रेटिंग (बीबीबी माइनस/बीएए3) पर रखा गया। वैश्विक स्तर पर, भारत जैसे बड़े आर्थिक आधार और कर्ज चुकाने की क्षमता वाले देशों को आमतौर पर एएए रेटिंग मिलती रही है, पर भारत और चीन अपवाद रहे। 2005 में पांचवी सबसे बड़ी इकोनॉमी रहे चीन को ए माइनस/ए2 रेटिंग मिली, जबकि भारत लगभग दो दशक तक बीबीबी माइनस/बीएए3 पर अटका रहा, भले ही उसकी संरचनात्मक ताकत साफ दिख रही थी। भारत का ये मुकाम दशकों के क्रांतिकारी सुधारों का नतीजा है। 1990 के शुरुआती उदारीकरण ने बंधन हटाए और उद्यमिता को पंख दिए। पिछले एक दशक में टैक्स सुधार (जीएसटी), बैंकिंग और डिजिटलीकरण के बदलाव आदि हुए। बुनियादी ढांचे पर खर्च 2019-20 के 5.36 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2025-26 में 11.21 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया, जो जीडीपी का करीब 5.5त्न है। महामारी के बाद भारत के वित्तीय अनुशासन ने सबको चौंकाया है। वित्तीय घाटा 2020-21 के 9.2त्न से घटकर 2025-26 में 4.4त्न के लक्ष्य तक आ गया। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने मुद्रास्फीति को 2-6त्न के दायरे में रखा, जो जुलाई 2025 में 1.55त्न तक गिर गई यानी पांच साल का सबसे निचला स्तर। 60त्न विकास घरेलू खपत से आता है और 690 अरब डॉलर से ज्यादा के विदेशी मुद्रा भंडार भारत को बाहरी झटकों, जैसे रूसी आयात पर जुर्माने व अमेरिकी टैरिफ से बचाते हैं, जिसे एसएंडपी ने ‘सहनीय’ बताया।
इसके बावजूद एजेंसियां भारत की रेटिंग्स उसकी वास्तविक स्थिति और ताकत को कमतर आंकती रही हैं। सॉवरेन रेटिंग्स ‘डिफॉल्ट’ की संभावना को दर्शाती हैं अर्थात कर्ज चुकाने की इच्छा और क्षमता। भारत का इस क्षेत्र में रिकॉर्ड बेदाग है क्योंकि अभी कोई सॉवरेन डिफॉल्ट नहीं हुआ। उसका विदेशी मुद्रा में लिया कर्ज कम और भंडार मजबूत है। फिर भी, रेटिंग एजेंसियां यूरोपीय देशों को अग्रिम बताती हैं, जिनकी विकास गति भी धीमी है और कर्ज भी अधिक। ये बीबीबी अपग्रेड एक बड़ी उपलब्धि है, जो भारत की आर्थिक मजबूती, वित्तीय समझदारी और सुधारों को दर्शाती है लेकिन ये वैश्विक आर्थिक संस्थानों के लिए सबक व सुझाव भी है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं की असली ताकत को यूरोप-केंद्रित मानकों से न मापा जाए। रेटिंग एजेंसियों को अपने तरीकों में सुधार लाना होगा और वहीं भारत के लिए भी राह स्पष्ट है। सुधारों को जारी रखें। आर्थिक स्थिरता बनाए रखें व क्रेडिट रेटिंग की सीढ़ी चढ़ें।

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