बड़ा सवाल यह है कि सब कुछ जानते हुए भी पुलिस, सुरक्षा एजेंसियां और सर्च इंजन संचालित करने वाली कंपनियां इन पर रोक क्यों नहीं लगा पाती। चिंता की बात यह है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर एस्कॉर्ट सर्विस ग्रुप में शहर की महत्त्वपूर्ण लोकेशन और युवतियोंं के फोटो साझा किए जाते हैं। कई होटलों और स्पा सेंटरों की आड़ में देह व्यापार तक का अनैतिक काम होने लगा है। एस्कॉर्ट सर्विस के दलालों ने युवाओं को जाल में फंसाना शुरू कर दिया है।
एस्कॉर्ट सर्विस के नाम पर ठगों के झांसे में आए युवकों से अश्लील चैटिंग या उनके अश्लील वीडियो रिकार्डिंग पर ब्लेकमेलिंग का दौर शुरू हो जाता है। ऐसा नहीं है कि यह सब सामने नहीं आता। लेकिन ठगी के शिकार हुए अधिकांश लोग लोकलाज के डर से पुलिस को शिकायत करने की बजाय अपनी मेहनत की कमाई ठगों को सौंप देते हंै। पुलिस कई बार चेतावनी देती रही है कि ठगों के भेजे जाने वाले किसी भी पेमेंट लिंक को क्लिक नहीं करें और न ही अपने बैंक अकाउंट की डिटेल साझा करें। साइबर सिक्योरिटी सिस्टम को अपने मोबाइल से जोड़कर रखने की सलाह भी दी जाती है। साइबर ठगी को रोकने के जिस गति से प्रयास होते हैं, उससे कहीं ज्यादा रफ्तार से ठगी के नए तौर-तरीके विकसित हो जाते हैं।
एस्कॉर्ट सर्विस के नाम पर ठगी भी ऐसा ही जाल है जो सतर्क नहीं रहने पर किसी को भी आसानी से शिकार बना सकता है। ठगों का जाल किस कदर फैला हुआ है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2024 में दुनियाभर में 498 लाख करोड़ से ज्यादा की साइबर ठगी हुई। भारत में वर्ष 2023 में 9.2 लाख से ज्यादा शिकायतें आईं, जिनमें 6 हजार करोड़ की चपत लगी। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट भी बताती है कि साइबर ठगी 6 साल में 42 गुना बढ़ गई। ऐसे में ठगी से बचाव के जागरूकता के प्रयासों को गति देने व ठगों के जाल को तोडऩे की जरूरत है।
– नरोत्तम शर्मा
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