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संपादकीय: प्रतिभाशाली बच्चों के भविष्य से खिलवाड़

मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश की चाह रखने वाले लाखों अभ्यर्थियों का भरोसा तोडऩे के लिए ऐसी इक्का-दुक्का घटनाएं ही काफी होती हैं।

भोपालMay 07, 2025 / 01:10 pm

pankaj shrivastava

तमाम सख्त उपायों के बावजूद प्रतिष्ठित नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट ) में बैठने वाले अभ्यर्थियों का भरोसा टूटने का काम फिर हो गया। भारतीय प्रतिभावान विद्यार्थियों के लिए होने वाली स्तरीय परीक्षाओं में से एक ‘नीट’ लापरवाही के दलदल से बाहर नहीं निकल पाई है।
गत चार मई को सम्पन्न हुई इस परीक्षा में राजस्थान में जयपुर, बिहार में समस्तीपुर और अन्य स्थानों पर डमी परीक्षार्थियों के पकड़े जाने की घटनाएं बताती हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं में जाने के इच्छुक बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाली ये घटनाएं रोकी नहीं जा सकी हैं। कमजोर अभ्यर्थी की जगह स्कोरर के इस परीक्षा में बैठने के मामले जहां नहीं खुल पाते वहां कमजोर छात्र भी दाखिले की सीढ़ी तक पहुंच ही जाता है।
मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश की चाह रखने वाले लाखों अभ्यर्थियों का भरोसा तोडऩे के लिए ऐसी इक्का-दुक्का घटनाएं ही काफी होती हैं। ये मामले तो तब सामने आए हैं जब परीक्षा देने गए बच्चों को कड़ी सुरक्षा जांच के बीच प्रवेश दिया गया। अभिभावक बच्चों के सकुशल परीक्षा देकर आने की उम्मीद में परीक्षा केन्द्रों के बाहर घंटों कड़ी धूप में खड़े रहने को मजबूर भी हुए। कुछ को आधार कार्ड के चक्कर में दौड़ लगाते देखा गया। हर बार की तरह अभिभावकों ने जांच की इस सख्त व्यवस्था पर रोष भी व्यक्त किया। ईमानदार प्रतिभागियों और उनके अभिभावकों को भरोसा था कि अब इस परीक्षा में किसी किस्म की लापरवाही की गुंजाइश नहीं है।
परीक्षा में ‘मुन्ना भाइयों’ के शामिल होने के समाचार अखबारों की सुर्खियों में छाए रहे। एक तरह से वही तरीका जो पिछले सालों से इस परीक्षा के प्रति भरोसा तोड़ता रहा है वह फिर देखा गया। जब कभी एवजी परीक्षार्थियों को बैठाने वाला गिरोह पकड़ा जाता है तो डमी परीक्षार्थी के रूप में बैठने वाले किसी प्रतिभाशाली का भविष्य भी चौपट हो जाता है। चंद रकम के लालच में दलालों के झांसे में आकर ऐसे प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी डमी छात्र के रूप में परीक्षा देने पहुंच जाते हैं।
चिंता इस बात की भी है कि इस सब प्रक्रिया के सूत्रधार दलालों का कुछ नहीं बिगड़ता। पकड़े जाने पर थोड़ी-बहुत सजा हो भी गई तो सजा पूरी कर ये फिर नए स्थान और नए नाम से सक्रिय हो जाते हैं। भविष्य अंधकारमय तो उन प्रतिभाशाली विद्यार्थी का होता है, जिनका हक मारकर कोई अन्य मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने में कामयाब हो जाता है। सवाल ये है कि चाक-चौबंद व्यवस्थाओं में भी सेंध कैसे लग जाती है? फेस वैरिफिकेशन, बायोमैट्रिक्स का सत्यापन, आधार कार्ड की जांच, प्रवेश पत्र के फोटो से मिलान आदि कितने ही उपाय कैसे फेल हो जाते हैं?
सीधी-सी बात है कि जिम्मेदार ही लापरवाही बरत रहे हैं। ऐसे मामले सामने आते भी हैं तो आरोपी बचाव की गलियां भी निकाल लेते हैं। दलाली के खेल लम्बी-चौड़ी बिसात पर होते हैं। परीक्षाओं की पवित्रता खत्म करने वाले पूरे कुनबे को सख्त सजा देने का काम होना चाहिए, ताकि भरोसा कायम रहे।

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