चिकित्सा क्षेत्र के अध्ययनों में यह कई बार कहा जा चुका है कि तंबाकू, शराब और मीठे पेय का अत्यधिक सेवन कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के अलावा डायबिटीज और दिल की बीमारियों को निमंत्रण दे रहा है, इसलिए इनके उत्पादन व खपत दोनों पर ही काबू पाना होगा। ऐसे उत्पादों पर अत्यधिक कर लगने से स्वाभाविक रूप से इनकी खरीद की रफ्तार भी कम हो जाएगी। धीरे-धीरे लोगों को इन उत्पादों की तलब भी कम हो जाएगी। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि इन उत्पादों की कीमतों में एक साथ ही पचास फीसदी की बढ़ोतरी कर दी जाए तो आने वाले पचास वर्षों में समय से पहले होने वाली पचास करोड़ मौतों को टाला जा सकता है। गैर-संचारी रोगों के कारण होने वाली मौतें भारत में भी बड़े संकट के रूप में सामने हैं।
हमारे यहां तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर प्रतिबंधात्मक कदम लगाने के साथ-साथ सिगरेट व तंबाकूके जानलेवा होने की वैधानिक चेतावनी संबंधित उत्पाद के पैक पर देने का कानूनी प्रावधान है। इसके बावजूद न तो शराब और न ही तंबाकू उत्पादों की बिक्री पर लगाम लग पाई है। मीठे पेय समेत हानिकारक डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के मामलों में भी ऐसा ही है। दरअसल, इन उत्पादों को सरकारी राजस्व का बड़ा जरिया मानने की प्रवृत्ति बनी हुई है। यह एक हद तक सच भी है। लेकिन जब इस राजस्व की तुलना स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्चों से की जाती है तो तस्वीर का दूसरा पहलू ही नजर आता है। जाहिर है तंबाकू, शराब और मीठे पेय जैसे उत्पादों को अधिक महंगा करने के नतीजेे स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती प्रदान करने वाले होंगे। दाम बढऩे का सबसे ज्यादा असर निम्न आय वर्ग पर होता है। तथ्य यह भी है कि इस आयुवर्ग के लोग बीमारियों से ज्यादा ग्रसित रहते हैं। सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की भी है कि सिर्फ कर भार बढ़ाना ही काफी नहीं बल्कि इन उत्पादों के सेवन के घातक नतीजों को लेकर जनजागरूकता भी बढ़ानी होगी।