सम्पादकीय : रक्षा क्षेत्र में और बढ़ाने होंगे आत्मनिर्भरता के प्रयास
ऐसे में जब देश का राजनीतिक नेतृत्व 2047 तक विकसित भारत के विजन को रेखांकित करने में जुटा है तो देश को आधुनिक उपकरणों के साथ-साथ सशस्त्र बलों को और मजबूती देने की जरूरत समझी गई है।


यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि ही कही जाएगी कि देश कर रक्षा उत्पादन 1.5 लाख करोड़ के ऐतिहासिक स्तर को पार कर गया है। आत्मनिर्भर भारत की दिशा में इसे एक मील का पत्थर भी कहा जा सकता है। यह इसलिए क्योंकि पिछले एक दशक में भारत ने रक्षा क्षेत्र में आयात पर निर्भरता घटाने के प्रयास भी हुए हैं। ऐसे में जब देश का राजनीतिक नेतृत्व 2047 तक विकसित भारत के विजन को रेखांकित करने में जुटा है तो देश को आधुनिक उपकरणों के साथ-साथ सशस्त्र बलों को और मजबूती देने की जरूरत समझी गई है।
सच तो यह भी है कि आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, रक्षा उत्पादन और निर्यात संवद्र्धन नीति जैसे बड़े रणनीतिक फैसलों के कारण घरेलू रक्षा उत्पादनों को एक हद तक प्रोत्साहन मिला है। रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्रों की भागीदारी भी अपेक्षाकृत बढ़ी है और सार्वजनिक उपक्रमों की उत्पादन क्षमता में भी सुधार आया है। इसमें एमएसएमई ने भी योगदान दिया। इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि 2019-20 में रक्षा उत्पादन का आंकड़ा महज 79,071 करोड़ रुपए का था, जो मात्र पांच साल में रेकॉर्ड तोड़ ऊंचाई पर पहुंच गया। पिछले वित्त वर्ष की तुलना में रक्षा निर्यात में भी 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इन सब आंकड़ों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो साफ नजर आता है कि देश रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में तेज से उभर रहा है। रक्षा के मोर्चे पर वैश्विक मंचों पर भी भारत की छवि मजबूत होती जा रही है। हाल में लोवी इंस्टीट्यूट पावर इंडेक्स की रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि रक्षा क्षेत्र में भारत दुनिया के सिरमौर देशों की कतार में खड़ा है। इतना ही नहीं, देश आधुनिक हथियारों और तकनीक के मामले में तेजी से तरक्की कर रहा है, इस तथ्य की पुष्टि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी हुई जब ब्रह्मोस मिसाइलों और ड्रोन रोधी स्वदेशी प्रणाली आकाशतीर ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। हाल में वायुसेना प्रमुख ने भी कहा कि हमारे हमलों से पाकिस्तान इस कदर घबराया हुआ था कि वह बार-बार संघर्ष रोकने विराम के लिए गिड़गिड़ा रहा था। यह बात सही है कि रक्षा क्षेत्र में उत्पादन बढ़ रहा है लेकिन इस प्रगति के बावजूद रक्षा क्षेत्र में आयात पर निर्भरता को घटाना अभी भी चुनौती बना हुआ है। इन प्रयासों को बढ़ाने के लिए अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में मेहनत करनी होगी और निवेश भी बढ़ाना होगा। छोटे और मध्यम उद्यमों को रक्षा उत्पादन में और अवसर देने होंगे। साथ ही उत्पादों की गुणवत्ता और बाजार की प्रतिस्पर्धा का भी ध्यान रखना होगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि रक्षा मंत्रालय के आंकड़े सैन्यबलों का हौसला और देश का मनोबल बढ़ाने वाले हैं। वैश्विक स्तर पर बन रहे तनाव के माहौल को देखते हुए इस गति को बनाए रखने और रक्षा उत्पादनों में आधुनिक तकनीक को शामिल करना भी जरूरी है। इसके लिए सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच बेहतर साझेदारी, नए बाजारों की खोज और रक्षा स्टार्टअपों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना होगा। इतना सब करके ही हम भविष्य की तैयारी कर सकेंगे।
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