संपादकीय : भारत-चीन रिश्तों में सुधार की दिशा में अहम यात्रा
चीन के विदेश मंत्री वांग यी सोमवार से भारत के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। इस माह के अंत में शुरू होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा से पूर्व वांग यी की इस यात्रा को दोनों देशों के संबंधों में सुधार की दिशा में […]


चीन के विदेश मंत्री वांग यी सोमवार से भारत के दो दिवसीय दौरे पर रहेंगे। इस माह के अंत में शुरू होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा से पूर्व वांग यी की इस यात्रा को दोनों देशों के संबंधों में सुधार की दिशा में अहम माना जा रहा है। यह यात्रा इसलिए भी खास है क्योंकि सीमा विवाद पर 24वें दौर की स्पेशल रिप्रजेंटेटिव (एसआर) स्तर की बातचीत के लिए वे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से मुलाकात करेंगे। अपने दौर में वांग यी की भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भी द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा होनी है। वांग यी की यह यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब सीमा पर वर्षों तनाव के बाद दोनों देश अपने संबंधों को फिर से पटरी पर लाने की दिशा में नजर आ रहे हैं। भारत ने पिछले माह ही चीनी नागरिकों के लिए पर्यटन वीजा फिर शुरू करने का फैसला किया तो उसे भी संबंधों में सुधार की दिशा में अहम कदम ही माना जा रहा है। भारत और चीन दोनों ही इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि सीमा पर शांति बनाए रखने से ही दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्ते भी बेहतर रह पाएंगे। तेजी से बदलती वैश्विक राजनीति में भी चीन को भारत के साथ मधुर संबंध बनाए रखना जरूरी हो गया है। लेकिन भारत के साथ व्यापार बढ़ाने को उत्सुक चीन को सीमा पर तनाव कम करने की दिशा में भी ठोस कदम उठाने होंगे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर पहले भी कह चुके हैं कि स्थिर सीमा ही भारत-चीन रिश्तों की बुनियाद है। टैरिफ को लेकर भारत और अमरीका के बीच जैसे संबंध हैं, उन्हें देखते हुए चीन और भारत के बीच के रिश्तों पर सबकी नजर रहने वाली है।
भारत की मंशा स्पष्ट रही है कि वह अमरीका या दूसरी वैश्विक ताकतों की अपेक्षाओं पर निर्भर नहीं रहता बल्कि अपने हितों के अनुरूप फैसले करता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर पहले भी कह चुके हैं कि भारत-चीन रिश्तों को किसी तीसरे देश के इर्द-गिर्द नहीं घूमना चाहिए। चीन द्वारा पाकिस्तान को सामरिक सहायता देकर आतंकवाद का परोक्ष समर्थन करने की चीन की नीति निश्चय ही भारत को असहज करने वाली रही है। गत मई में पाकिस्तान के साथ सीमा पर बढ़ते तनाव के दौरान, भारत ने चीन और पाकिस्तान के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग को भी देखा है। पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद, चीन में बने लड़ाकू विमान, एयर डिफेंस सिस्टम और एयर-टू-एयर मिसाइलों का भारत के खिलाफ इस्तेमाल किया था। उम्मीद की जानी चाहिए कि चीनी विदेश मंत्री की भारत यात्रा में दोनों देशों के रिश्तों में जमी बर्फ आपसी संवाद के बाद और पिघलेगी। लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए भारत को फूंक-फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। दोनों देश आपसी आर्थिक और बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर फोकस तभी कर सकते हैं जब सीमा विवाद को पूरी तरह से सुलझा लिया जाए।
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