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ज्ञान से आत्मनिर्भरता की ओर शिक्षा का नवजागरण

प्रो. हिमांशु राय, निदेशक, आइआइएम इंदौर

जयपुरAug 18, 2025 / 01:12 pm

Shaily Sharma

पांच वर्ष पहले 29 जुलाई 2020 को भारत की शिक्षा व्यवस्था ने एक ऐसा स्वप्न देखा, जो केवल बदलाव का नहीं बल्कि पुनर्जागरण का प्रतीक था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 ने यह उद्घोष किया कि शिक्षा अब केवल परीक्षा और डिग्री का माध्यम नहीं रहेगी, बल्कि यह भारत की आत्मा, संस्कृति और भविष्य को संवारने का सबसे शक्तिशाली माध्यम बनेगी। पांच वर्षों की यात्रा में यह नीति स्वयं एक आंदोलन बन गई है, जिसने हमारे युवाओं को अपनी पहचान और संभावनाओं को नए दृष्टिकोण से देखने की शक्ति दी है।
एनईपी 2020 ने कठोर और औपनिवेशिक शिक्षा मॉडल को एक लचीली और रचनात्मक प्रणाली में परिवर्तित कर दिया है। 5+3+3+4 का ढांचा केवल कक्षाओं का पुनर्विन्यास नहीं, बल्कि सीखने का एक नया दर्शनशास्त्र है। इसमें 5 वर्ष फाउंडेशन, 3-3 वर्ष प्रिपरेटरी और मिडिल तथा 4 वर्ष सेकेंडरी चरण शामिल हैं। ‘अकादमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स’ और बहु-प्रवेश तथा निकास विकल्पों ने विद्यार्थियों को अपने ज्ञान की यात्रा को स्वयं गढ़ने का अवसर दिया है। इस दृष्टि का परिणाम है कि भारत का सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) 2019 के 26.3% से बढ़कर 2023 में 28.4% हो गया है और महिलाओं का जीईआर 28.5% तक पहुंच चुका है। 2025 के लिए 1.28 लाख करोड़ रुपए का शिक्षा बजट इस बात का प्रमाण है कि यह नीति केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं, बल्कि ठोस और दीर्घकालिक परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ रही है।
प्रबंधन शिक्षा में तो इस नीति ने अभूतपूर्व बदलाव किया है। एनईपी ने यह स्पष्ट कर दिया कि प्रबंधन केवल कॉर्पोरेट लाभ का नाम नहीं है, बल्कि यह रचनात्मकता, संवेदनशीलता और भविष्य दृष्टि से जुड़ा एक शिल्प है। अब एमबीए कार्यक्रमों में डेटा एनालिटिक्स, डिजाइन थिंकिंग, सतत विकास और उद्यमिता को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। यह बदलाव भारतीय प्रबंध संस्थानों को विश्वस्तरीय नेतृत्व तैयार करने की दिशा में अग्रसर कर रहा है। यह कार्यक्रम छात्रों को न केवल प्रबंधन के मूल सिद्धांत सिखाता है, बल्कि उन्हें भारतीय इतिहास, संस्कृति और भाषाओं से भी जोड़े रखता है। मास्टर ऑफ साइंस इन डेटा साइंस एंड मैनेजमेंट जैसे कार्यक्रम तकनीक और प्रबंधन के अनूठे संगम को आगे बढ़ा रहे हैं। अनुसंधान और नवाचार के क्षेत्र में भी एनईपी ने भारत को एक नई ऊर्जा दी है। 2017 से 2022 के बीच हमारे देश का शोध उत्पादन 54% बढ़ा है और अब 1.3 मिलियन से अधिक शोध पत्र और 8.9 मिलियन उद्धरण ज्ञान जगत की उन्नति का प्रमाण हैं। एनईपी 2020 के समावेशी शिक्षा के सिद्धांत को आइआइएम इंदौर ने भी आत्मसात किया है। 2025-27 बैच में 54% महिलाएं हैं, जो पहली बार पुरुषों से अधिक हैं। यह विविधता न केवल शिक्षा को समृद्ध बनाती है, बल्कि हमारे समाज की वास्तविक संरचना को भी दर्शाती है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह नीति भारत की आत्मा को पुनर्जीवित कर रही है।
पांच वर्षों में एनईपी ने यह सिद्ध किया है कि यह नीति केवल शिक्षा सुधार का दस्तावेज नहीं, बल्कि भारत के आत्मनिर्भर और ज्ञान-प्रधान राष्ट्र बनने की दिशा में एक ठोस कदम है। प्रबंधन शिक्षा में जो क्रांति शुरू हुई है, वह अब वैश्विक स्तर पर भारत को एक नई पहचान दिला रही है।
28.4%
भारत का सकल नामांकन अनुपात (GER) 2023 तक

→ 28.5%
महिलाओं का सकल नामांकन अनुपात

→ 54%
हमारे देश का शोध उत्पादन 2017 से 2022 के बीच बढ़ा

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