सम्पादकीय : प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों को गंभीर चेतावनी
धराली और हर्षिल में आए सैलाब के दृश्य वाकई भयावह हैं। यह आपदा अपने साथ कितने घरों, दुकानों और होटलों को बहा ले गई, इसका आकलन होना बाकी है, लेकिन हादसे के बाद लोगों में डर और अनिश्चितता को साफ देखा जा सकता है।


उत्तराखंड के उत्तरकाशी में धराली समेत तीन स्थानों पर आई प्राकृतिक आपदा प्रकृति से खिलवाड़ करने वालों के लिए गंभीर चेतावनी है। इन आपदाओं ने एक बार फिर सचेत किया है कि पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। धराली और हर्षिल में आए सैलाब के दृश्य वाकई भयावह हैं। यह आपदा अपने साथ कितने घरों, दुकानों और होटलों को बहा ले गई, इसका आकलन होना बाकी है, लेकिन हादसे के बाद लोगों में डर और अनिश्चितता को साफ देखा जा सकता है। राहत की बात सिर्फ इतनी है कि यह हादसा दिन में हुआ, इससे तत्काल राहत कार्य शुरू किए जा सके। अगर यह रात में होता तो बड़ी संख्या में जनहानि हो सकती थी। धराली और हर्षिल पवित्र चारधाम यात्रा के मार्ग में आते हैं। अभी चारधाम यात्रा चल रही है। ऐसे में इन दोनों जगहों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु ठहरते हैं।
दरअसल, पूरा हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों का दंश झेल रहा है। इस क्षेत्र में मौसम का अनियमित पैटर्न, ग्लेशियरों के टूटने और बादलों के फटने की घटनाएं हो रही हैं। वर्ष 2013 में केदारनाथ में मची भारी तबाही के बाद से राज्य में लगातार छोटी-बड़ी घटनाएं होती रही हैं। 2021 में चमोली जिले में नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के पास एक ग्लेशियर टूटकर गिर गया था। इससे धौलीगंगा नदी में अचानक बाढ़ आ गई और तपोवन विष्णुगाड पनबिजली परियोजना में काम करने वाले कई श्रमिकों को जान गंवानी पड़ी। इसी तरह, 2023 में धार्मिक पर्यटन स्थल जोशीमठ में भी भूस्खलन ने एक बड़ी आबादी को विस्थापित कर दिया था। दरअसल, पहाड़ी राज्यों में अनियोजित शहरीकरण और वनों की बेतहाशा कटाई ने इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को बढ़ा दिया है। बढ़ती आबादी और लाखों पर्यटकों के बोझ के कारण स्थिति और विस्फोटक बन गई है। लेकिन, यह भी तथ्य है कि पानी निकलने के रास्तों, नदियों और नालों के मुहानों पर कंक्रीट के बड़े-बड़े स्ट्रेक्चर खड़े हो चुके हैं। जिन रास्तों से पानी को बहना था, वहां लोग बस चुके हैं। ऐसे हालात साफ बताते हैं कि यह स्थिति जानबूझकर आफत बुलाने जैसी है। हालांकि अभी धराली और आसपास के प्रभावित क्षेत्र में पूरा ध्यान त्वरित बचाव और राहत कार्यों पर होना चाहिए, लेकिन पहाड़ी राज्यों में भौगोलिक स्थितियों को देखते हुए व्यापक आपदा प्रबंधन रणनीति बनाए जाने की जरूरत है। संवेदनशील राज्यों में प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को भी अपनाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
आपदा प्रबंधन की तैयारियों में स्थानीय भागीदारी, संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण और भूमि उपयोग के नियमों की सख्ती भी होनी चाहिए। धराली में हुआ नुकसान बताता है कि प्रकृति किसी से भेदभाव नहीं करती। इतना जरूर है कि हमारी तैयारियां नुकसान को कम कर सकती हैं। पहाड़ी राज्यों में बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए नीति नियंताओं को ध्यान देने की जरूरत है।
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