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सम्पादकीय : स्वदेशी से मिलेगी देश की अर्थव्यवस्था को दिशा

यह नीति न केवल भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है, बल्कि रोजगार सृजन और आयात-निर्यात संतुलन में सुधार का भी एक अवसर है।

जयपुरAug 03, 2025 / 08:21 pm

arun Kumar

US Tarrifs on india Trade

US tariff will open avenues for India to focus on self-reliance (Photo: ANI)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में वाराणसी में ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक इन इंडिया’ का मंत्र दोहराते हुए स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने का आह्वान किया। यह बयान वैश्विक व्यापार में बढ़ते टैरिफ युद्ध, विशेष रूप से अमरीका द्वारा भारतीय सामानों पर 25% टैरिफ की संभावना के जवाब में आया है। यह नीति न केवल भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता को मजबूत करने की दिशा में एक कदम है, बल्कि रोजगार सृजन और आयात-निर्यात संतुलन में सुधार का भी एक अवसर है।
‘मेक इन इंडिया’ पहल, जो 25 सितंबर 2014 को शुरू हुई, ने भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने का लक्ष्य रखा। इसने इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा, और कपड़ा जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का व्यापारिक निर्यात 437 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंचा, और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 6.4 बिलियन डॉलर से बढक़र 29.1 बिलियन डॉलर हो गया। प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआइ) योजना ने 1.28 लाख करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया, जिससे 10.8 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन और 8.5 लाख रोजगार सृजित हुए। स्वदेशी उत्पादों को अपनाने से आयात पर निर्भरता कम होगी, जिससे व्यापार घाटा घटेगा। उदाहरण के लिए, 2014 में भारत में 99% मोबाइल फोन आयात होते थे, लेकिन आज 99% घरेलू स्तर पर निर्मित हैं। यह आत्मनिर्भरता अर्थव्यवस्था को वैश्विक झटकों से बचाने में मदद करेगी।
स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने से रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी। कपड़ा क्षेत्र ने 14.5 करोड़ नौकरियां सृजित की हैं और पीएलआई योजना के तहत फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स में लाखों नौकरियां पैदा हुई हैं। विशेष रूप से, आइफोन के इकोसिस्टम ने 1,75,000 प्रत्यक्ष नौकरियां सृजित कीं, जिनमें 72 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को मिलीं।
भारत कई क्षेत्रों में स्वदेशी वस्तुओं को आसानी से अपना सकता है। मोबाइल फोन, रक्षा उपकरण (जैसे आइएनएस विक्रांत), रेलवे (वंदे भारत ट्रेनें), और फार्मास्यूटिकल्स (60% वैश्विक टीकों की आपूर्ति) में भारत पहले से ही आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर है। इसके अलावा, कपड़ा, खिलौना (400 मिलियन प्रतिवर्ष), और डेयरी (अमूल का अमरीका में विस्तार) जैसे क्षेत्रों में स्वदेशी उत्पादों का उपयोग बढ़ाया जा सकता है। सेमीकंडक्टर जैसे उभरते क्षेत्र में 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश और पांच नए प्लांट इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
भारत मुख्य रूप से कच्चे तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, और रसायनों के आयात पर निर्भर है। 2023-24 में आयात की तुलना में निर्यात कम रहा, जिससे व्यापार घाटा बना रहा। स्वदेशी उत्पादों को अपनाने से आयात, विशेष रूप से चीन से, कम होगा। हालांकि, राहुल गांधी ने दावा किया कि मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी का केवल 14त्न है और चीन से आयात दोगुना हुआ है। फिर भी, रक्षा निर्यात 686 करोड़ रुपए से बढक़र 21,083 करोड़ रुपए और मोबाइल निर्यात 1,556 करोड़ से 1.2 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। यह दर्शाता है कि स्वदेशी नीति निर्यात को बढ़ा सकती है।
स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता देने वाले प्रमुख देशों में जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, चीन, और अमरीका शामिल हैं। जापान और दक्षिण कोरिया ने अपनी ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों को बढ़ावा देकर वैश्विक बाजार में जगह बनाई। जर्मनी अपने मशीनरी और ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए जाना जाता है, जबकि चीन ने सस्ते विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। भारत इन देशों से प्रेरणा ले सकता है।
‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ का मंत्र भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नीति न केवल आर्थिक विकास को गति देगी, बल्कि रोजगार सृजन, आयात पर निर्भरता में कमी, और निर्यात में वृद्धि के माध्यम से भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाएगी।

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