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सम्पादकीय : मेडिकल शिक्षा में दाखिले की पारदर्शी प्रक्रिया जरूरी

देश में मेडिकल शिक्षा के प्रवेश पाठ्यक्रमों के लिए साल-दर-साल होने वाली राष्ट्रीय स्तर की राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) में बैठने वाले छात्र-छात्राओं की लाखों की तादाद और प्रवेश की पात्रता में कड़ी मारामारी से सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि यह चाहत पूरी होना कितना मुश्किल है।

जयपुरJul 08, 2025 / 08:26 pm

harish Parashar

अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने की चाहत अभिभावकों की भी कड़ी परीक्षा लेने वाली होती है। देश में मेडिकल शिक्षा के प्रवेश पाठ्यक्रमों के लिए साल-दर-साल होने वाली राष्ट्रीय स्तर की राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) में बैठने वाले छात्र-छात्राओं की लाखों की तादाद और प्रवेश की पात्रता में कड़ी मारामारी से सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि यह चाहत पूरी होना कितना मुश्किल है। लेकिन चिंता की बात यह है कि मेडिकल शिक्षा संस्थानों को अनुमति देने से लेकर प्रवेश परीक्षा में डमी विद्यार्थी बैठाने और इसके बाद प्रवेश कराने तक में भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। तमाम प्रतिबंधात्मक कदम उठाने के बावजूद निजी मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई-मैनेजमेंट कोटे से प्रवेश की गारंटी देने वाले दलालों का सक्रिय होना इसी भ्रष्टाचार की कड़ी है।
मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की प्रक्रिया अभी शुरू होना बाकी है। इससे पहले ही छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में एनआरआइ व मैनेजमेंट कोटे से एक करोड़ रुपए तक में सीट बुक कराने में दलालों के सक्रिय होने का खुलासा हुआ है। कमोबेश दूसरे प्रदेशों में भी मेडिकल कॅालेजों में प्रवेश की गारंटी लेने वाले दलाल, अभिभावकों को झांसे में लेने में जुट गए हैं। जबकि तथ्य यह है कि चाहे कोटा आधारित प्रवेश हो या मेरिट आधारित सबकी की प्रक्रिया काउंसलिंग के जरिए होती है। इसके बावजूद प्रवेश की गारंटी दिलाने वाले सक्रिय हों तो प्रवेश प्रक्रिया पर भी सवाल उठने स्वाभाविक है। ऐसे में जरूरत इस बात की भी है कि अभिभावकों को मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश की प्रक्रिया को लेकर आश्वस्त किया जाए। ऐसा तब ही संभव है मेडिकल कॉलेजों की मान्यता, प्रवेश परीक्षा और सीटों के आवंटन से लेकर समूची प्रवेश प्रक्रिया को पारदर्शी व केन्द्रीयकृत किया जाए। किस कॉलेज को कितनी सीटें आवंटित की गई हैं और इनके घटने-बढऩे को लेकर जानकारी भी अभिभावकों तक होनी चाहिए। मेडिकल शिक्षा में प्रवेश हो तो नीट परीक्षा में निश्चित स्कोरिंग की अनिवार्यता तो होनी ही चाहिए। ऊंची फीस देकर औसत अंक लाने वाले भी चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने में कामयाब हो जाएं तो उनकी योग्यता पर सवालिया निशान उठना स्वाभाविक है। मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की मारामारी को देखते हुए यह भी जरूरी है कि सरकारी मेडिकल कॉलेज अधिक से अधिक संख्या में खोले जाएं। औसत दर्जे का होने के बाद यदि कोई इस तरह करोड़ों रुपए की फीस देकर चिकित्सक बनने में कामयाब हो भी जाता है तो वह इस राशि को मरीजों से किस तरह से वसूलेंगे यह भी किसी से छिपा नहीं है।
स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूत नींव के लिए जरूरत इसकी है कि न केवल मेडिकल शिक्षा में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे बल्कि ऐसे डॉक्टर भी ऐसे तैयार हों जो न केवल योग्य हों बल्कि नैतिक रूप से भी उनका प्रशिक्षण सही हों।

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