सम्पादकीय : ऑस्ट्रेलिया में अल्बनीज की दूसरी पारी से संकेत
कनाडा की तरह ऑस्ट्रेलिया में भी कट्टरपंथी पार्टियों की करारी शिकस्त हुई है। एंथनी अल्बनीज की लेबर पार्टी का ऑस्ट्रेलिया में दबदबा बरकरार है। वह लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालेंगे।


कनाडा के बाद ऑस्ट्रेलिया के आम चुनाव में भी सत्तारूढ़ पार्टी की जीत से लग रहा है कि फिलहाल कई देशों में जनमत उदारवादी पार्टियों के पक्ष में है। कनाडा की तरह ऑस्ट्रेलिया में भी कट्टरपंथी पार्टियों की करारी शिकस्त हुई है। एंथनी अल्बनीज की लेबर पार्टी का ऑस्ट्रेलिया में दबदबा बरकरार है। वह लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालेंगे। अमरीका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की कनाडा को 51वां अमरीकी राज्य बनाने की धमकी ने कनाडाई मतदाताओं में राष्ट्रवादी भावनाओं को भडक़ाया था तो ऑस्ट्रेलिया में उनकी टैरिफ नीतियों ने लेबर पार्टी के प्रति लोगों का भरोसा बढ़ाया। चुनाव प्रचार के दौरान अल्बनीज ने वैश्विक आर्थिक चुनौतियों, विशेष रूप से ट्रंप की नीतियों के प्रभाव के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया के हितों की रक्षा पर जोर दिया। चुनाव अभियान में महंगाई, आवास संकट व जलवायु परिवर्तन भी अहम मुद्दे रहे।
दिलचस्प बात यह है छह महीने पहले ‘अमरीका फस्र्ट’ के जिस नारे के दम पर अमरीका में ट्रंप की सत्ता में वापसी हुई थी, वैसा एकलवादी नारा न कनाडा में चला, न ऑस्ट्रेलिया में। ऑस्ट्रेलिया की कंजर्वेटिव पार्टी के नेता पीटर डटन के लिए ट्रंप शैली का चुनाव प्रचार भारी पड़ा। उनकी पार्टी को तो हार झेलनी ही पड़ी, वह खुद की सीट भी नहीं बचा पाए। प्रचार के दौरान अल्बनीज ने कहा था, ‘हम किसी की नकल नहीं करेंगे। हमारी प्रेरणा हमारी जनता और हमारे मूल्य हैं।’ दूसरी तरफ पीटर डटन के भाषणों में ‘ऑस्ट्रेलिया फस्र्ट’ की जरूरत से ज्यादा गूंज उन्हें ले डूबी। अब उनकी पार्टी के नेता भी मान रहे हैं कि ट्रंप जैसे विचारों के कारण जनता का भरोसा डगमगाया। दरअसल, ज्यादातर देशों में ‘वैश्विक गांव’ (ग्लोबल विलेज) की अवधारणा इतनी फल-फूल चुकी है कि दूसरे देशों के साथ साझेदारी बढ़ाने और समावेशी विकास पर जोर दिया जा रहा है। वक्त का तकाजा भी यही है कि सभी देश अपने हितों पर ध्यान देने के साथ-साथ दूसरे देशों से संपर्कों को ज्यादा से ज्यादा मजबूत करें। एंथनी अल्बनीज की लेबर पार्टी की जीत न सिर्फ ऑस्ट्रेलिया की राजनीति के लिए अहम है, भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंधों के लिए भी खास है। अल्बनीज के पिछले कार्यकाल में देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ी साझेदारी का दूसरे कार्यकाल में विस्तार हो सकता है।
ऑस्ट्रेलिया के लिए भारत इस लिहाज से भी भरोसेमंद साझेदार है कि वहां करीब 9.16 लाख भारतीय बसे हैं। ब्रिटेन (9.64 लाख) के बाद ऑस्ट्रेलिया में यह अप्रवासियों का सबसे बड़ा समूह है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझा दृष्टिकोण रखने वाले भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 2022 के आर्थिक सहयोग-व्यापार समझौते (ईसीटीए) से द्विपक्षीय व्यापार लगातार बढ़ रहा है। सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने के साथ दोनों देश रक्षा और क्वाड समूह जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग कर रहे हैं। भारत को ऑस्ट्रेलिया के साथ कूटनीतिक रणनीति और मजबूत करनी चाहिए। ऐसा होने पर दोनों देश आपसी हितों को बढ़ावा दे सकेंगे।
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