आवारा पशुओं के संकट से मुक्ति दिलाने वाला फैसला
राजस्थान हाईकोर्ट के श्वानों सहित अन्य आवारा पशुओं को हटाने के लिए अभियान चलाने के निर्देशों को भी इसी समस्या के समाधान की राह माना जा सकता है।


आवारा श्वानों के आतंक से लोगों को छुटकारा दिलाने के मकसद से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश भले ही दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को लेकर हो, पर यह समस्या देश भर से जुड़ी है। राजस्थान हाईकोर्ट के श्वानों सहित अन्य आवारा पशुओं को हटाने के लिए अभियान चलाने के निर्देशों को भी इसी समस्या के समाधान की राह माना जा सकता है। आवारा श्वानों के काटने व सडक़ों पर घूमते आवारा पशुओं के कारण होने वाले हादसों को देखते हुए अदालतों के इन निर्देशों को जरूरी कहा जा सकता है। यह बात ओर है कि इन निर्देशों को कुछ पशु कू्ररता से जोड़ रहे हैं तो कुछ अव्यावहारिक करार दे रहे हैं। लेकिन सच तो यही है कि कोर्र्ट के निर्देश लोगों के जीवन की सुरक्षा की दृष्टि से दिए गए हैं।
देखा जाए तो अधिकांश शहरी इलाकों में आवारा पशुओं की बड़ी समस्या है। पिछले दिनों ही ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें आवारा कुत्ता ने किसी नवजात, बुजुर्ग व महिला को बुरी तरह से नोंच लिया जिनमें मौतें तक हो गईं। कुत्तों का ही नहीं बल्कि बंदरों का भी जंगलों से आबादी क्षेत्र में आने व आतंक मचाने की खबरें गाहे-बगाहे सामने आती रहती है। बीच मार्ग में व गलियों में खुले में घूमते गोवंश व अन्य दुधारू जानवर भी कम समस्या नहीं है। चिंता इस बात की भी है कि पालतु पशु दूध देना बंद कर दे तो इन्हें परिवार का सदस्य मानने वाले पालक भी अनुत्पादक समझकर छोड़ देते हैं। इतना ही नहीं, दूध दुहने के बाद खुले में छोडऩे की दुष्प्रवृत्ति भी बढ़ते सडक़ हादसों की वजह बन जाती है। गौशालाओं में भी अधिकांशत: गायों को ही रखा जाता है, बैल व सांड जैसे पशुओं को ऐसा आश्रय कम ही मिलता है। वैसे भी अधिकांश गोशालाओं में भी क्षमता से अधिक गोवंश रखे होते हैं तो उनकी देखरेख का संकट भी कम नहीं होता। सचमुच यह आंकड़ा चिंताजनक है कि प्रतिदिन देश भर में दस हजार से ज्यादा लोग डॉग बाइट के शिकार होते हैं। समस्या दोहरी है। गली-मोहल्लों तक से आवारा गोवंश और श्वानों से बचकर निकलना भारी काम होता है। जब कभी इन्हें हटाने के प्रयास होते हैं तो पशु कू्ररता के नाम पर पशु प्रेमी विरोध में खड़े हो जाते हैं। वस्तुत: पशु कू्ररता तब जरूर हो सकती है जब शेल्टर होम में रखे गए श्वान व अन्य जानवरों के खाने-पीने का बंदोबस्त ठीक से नहीं होता हो। बेजुबानों को रखने, उनके खान-पान और इलाज की समुचित व्यवस्था किए जाना ज्यादा जरूरी है। हमारे देश में पशुओं के प्रति लोगों का सेवाभाव भी कम नहीं है लेकिन यह भी देखनें में आता है कि श्वान हो या फिर ओर कोई पशु लोग खुले में उनके लिए खाद्य सामग्री, चारा आदि डालकर पुण्य कमाना चाहते हैं। इस चिंता को किए बिना कि ये श्वान या दूसरे पशु किसी की जान पर संकट भी खड़ा कर सकते हैं।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट व राजस्थान हाईकोर्ट दोनों के आदेशों की मंशा यही है कि श्वानों के काटने व आवारा मवेशियों से हादसों के मामले काबू में आएं। इसका बंदोबस्त सरकारों को करना है कि वे पशुओं के प्रति कू्ररता किए बिना शेल्टर होम आदि बनाकर इस समस्या का हल कैसे निकाल पाएंगी।
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